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Channel: भूले बिसरे-नये पुराने
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शनिवारीय अंदाज रहता है थोड़ा अलग सा ...

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शनिवारीय अंदाज 
रहता है थोड़ा अलग सा ...
नही रहता मन गुमसुम ..
इच्छा होती है कि कुछ शरारत करूँ
पता है क्यूँ........
कल रविवार जो है



उँगलियाँ ख़ुद पे उठा ख़ुद से सवाल कर आया
लिख सच को सच  एक नया बवाल कर आया
रौशनी  मयस्सर न हुई  ज़िन्दगी की राहों को
खुली   हकीकत  तो   इक  नया  सवाल आया


खिली चांदनी
झूमें लताओं पर
मुस्काती चंपा .


मैं जानती थी
तुम्हे और तुम्हारे प्यार को
मुझे लगता था
तुमने प्यार की डोर से
मुझे बांध रखा है


यह मुसकान तुम्हारी
डूबी हुई शरारत में
उलझा-उलझा खत हो
जैसे साफ़ इबारत में





आँसू ..... एक सैलाब
हदों में उफनता बिलखता
या सेहरा में ....भटका
समंदर पत्थर पे सर पटकना
लहरों का बिखरना सब है देखा-भाला 





 स्वर्ण कलश द्वै आपके,अमृत विष ज्यों साथ |
अमृत शैशव पा रहा, विष प्रियतम के हाथ |
 अहंकार सुख में नहीं, दुर्दिन में हो धीर |
यही ध्यान रख जो चलें,कभी न भोगें पीर |




तोड दिया दिल मेरा और फिर उसने ये कहा,
अब जाओ कहां तुम जाओगे ये केह्ते ना रुका !!
मेरे हाल पे हंसने वाले क्यों भूल गया तू सब,
तेरे आँसू मैंनें पोंछे थे तुझे याद नही क्यों अब !!


साल के ऊँचे ऊँचे पेड़, उनमे लिपटी जंगली लताएं
महुआ की मादक सुगंध, मतवाली जंगली अदायें


सदगुणियों के संग से, मनुआ बने मयंक
ज्यों नीरज का संग पा, शोभित होते पंक


चंदा चंचल चाँदनी, तारे गाएँ गीत
पावस की हर बूँद पर, नर्तन करती प्रीत



नूतन उच्छ्वास भरें
श्वासों में हर्ष के,
नया सा दिन उगा
वृक्ष पर वर्ष के !





सुप्रभात दोहे रच के, मैं आई हूँ आज |
अधर पर मुस्कान लिए,करती हूँ आगाज ||
रोज ले आए नई ,सुबह सुखद सन्देश |
पूरी हो हर कामना ,संकट हरे गणेश||


मुहब्बत  से  दिल  को  बचाना  पड़ेगा
हसीनों    से    पीछा     छुड़ाना  पड़ेगा
इलाजे-ग़मे-दिल  को  जाएं  कहां  हम
हकीमों   को   क़िस्सा   सुनाना  पड़ेगा


गफलती में अपनी हम मार खा गए ,
गरकाब अपनी नैया हम खुद करा गए .
गरजें जो मेघ आकर नाकाम बरसने में ,
गदगद हों बीज बोके अपने घर में आ गए .



संन्यास लेने के बाद गौतम बुद्ध ने अनेक
क्षेत्रों की यात्रा की। एक बार वह एक
गांव में गए। वहां एक स्त्री उनके पास आई
और बोली- आप तो कोई राजकुमार लगते हैं।




तेरे तसव्वुर से जब रोशन होती हैं आँखे
दूर होती है मुझसे और करतीं हैं तुझसे बातें....
तेरे चहरे को जब देखती हैं आँखे
स्मित मुस्कान लिए चमकती है आँखे....



एक लहर उतर गए साहिल भिगो गए..,
एक नजर उतर गए लबों का तिल भिगो गए..,
ओ नील समंदर गहरे हो इस कदर..,
तुम रूह से उतर गए तो दिल भिगो गए..,




Before I Die  :: Let Me Sing One Last Time
Before I Die  :: Let Me Dance One Last Time
Before I die  ::  Let Me Laugh Freely One Last Time
Before I Die :: Let Me Smile One Last Time



खट खटाक खड़क
सन्नाटे में गूंजती
कदमों की आवाजें
सिटकनी लगाते
अटकती झिझकती
श्वांसों की राह

 


ओ मेरे रहनुमा !
इतना मुझे बता दे,
वो राह कौनसी है,
जो गुज़रे  तेरे दरसे!



गि‍र गई कल
हाथों से छि‍टक कर
जमीन पर
एक पुरानी डायरी
उसमें से झांकने लगा
सूखा-सहेजा


याद में बसी
चंपा के फूलों की महक
अब भी महका जाती है
मुलाकात तुमसे
पहली -पहली ,
पहले -पहल जब
मिले थे चंपा की छाँव में


स्मित  बनफूलों का सौम्य तारुण्य ...!!
चंपई गुलाबी  पंखुड़ी पर ...
चाँदनी  का चांदी सा छाया लावण्य ...!!
भीनी भीनी सी खुशबू  ले



छोटी सी बूंद
कविता के सागर में
जब गोता लगाया तो
पाया की इस गहरे सागर में
बहुत कुछ छिपा है....




पढ़ते-सहेजते पता ही नहीं चला

काफी लिंक्स हो गए आज
अब बस
मिलूँगी बुध को
यशोदा


इस अंक के रचनाकारः 
अज़ीज़ जौनपुरी, शशि पुरवार, प्रीति सुराना, रामानंद दोषी, 
शिखा गुप्ता, डॉ.राज सक्सेना (राजकिशोर सक्सेना राज), 
मुस्कान, उपेन्द्र दुबे, ऋता शेखर "मधु", अनीता, सरिता भाटिया, 
सुरेश स्वप्निल, शालिनी कौशिक , पूर्णिमा दुबे, रीना मौर्या, 
नीतू सिंघल, भावना लालवानी, निवेदिता श्रीवास्तव, क्षमा. 
रश्मि शर्मा, उपासना सियाग, अनुपमा त्रिपाठी, रेवा टिबरेवाल  


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