नस-नस मे उमंगे जगा जाता है
पर अभी 20 दिन बचे है...
चर्चाएँ उसकी होने लगी है
चलते हैं आज के लिंक्स की ओर..
पर अभी 20 दिन बचे है...
चर्चाएँ उसकी होने लगी है
चलते हैं आज के लिंक्स की ओर..
मैंनें जीना सीख लिया...
आसमान से धरती तक फैले
अंधकार के आवरण को चीरती
आलोक की एक प्रखर लकीर को
ढूँढ लिया है !
आसमान से धरती तक फैले
अंधकार के आवरण को चीरती
आलोक की एक प्रखर लकीर को
ढूँढ लिया है !
आदत
आदत नही
भूलने की
भूलें सताती हैं
कह्ते हैं ...
वो भटके राही को
आदत नही
भूलने की
भूलें सताती हैं
कह्ते हैं ...
वो भटके राही को
इतनी गहराई भी क्या अच्छी !
भरी महफिल में तन्हाई भी क्या अच्छी !
हमारी आंख से मोती अब बरसते नहीं,
ग़रीब की बेसबब रुलाई भी क्या अच्छी !
भरी महफिल में तन्हाई भी क्या अच्छी !
हमारी आंख से मोती अब बरसते नहीं,
ग़रीब की बेसबब रुलाई भी क्या अच्छी !
इतनी गहराई भी क्या अच्छी !
भरी महफिल में तन्हाई भी क्या अच्छी !
हमारी आंख से मोती अब बरसते नहीं,
ग़रीब की बेसबब रुलाई भी क्या अच्छी !
भरी महफिल में तन्हाई भी क्या अच्छी !
हमारी आंख से मोती अब बरसते नहीं,
ग़रीब की बेसबब रुलाई भी क्या अच्छी !
ठगा है तुमको किसी ने तुम क्यो जिन्दगी को ठगते हो,
जीना है पगले अपने लिये क्यो किसी के लिये मरते हो !!
सफर सुहाना राह देखता राह देखता उसको क्यो भूले हो,
भूलना है तो भूलो उसको तुमको जो भूल हो !!
जीना है पगले अपने लिये क्यो किसी के लिये मरते हो !!
सफर सुहाना राह देखता राह देखता उसको क्यो भूले हो,
भूलना है तो भूलो उसको तुमको जो भूल हो !!
बिचारी कर्मनाशा!
अब कर्मनाशा को लेकर एक पौराणिक आख्यान भी आपको बताता चलूँ . सत्यवादी हरिश्चंद्र के पिता व सूर्यवंशी राजा त्रिवंधन के पुत्र सत्यव्रत,
जो त्रिशंकु के रूप में विख्यात हुए उन्हीं के लार से यह नदी अवतरित हुई।
अब कर्मनाशा को लेकर एक पौराणिक आख्यान भी आपको बताता चलूँ . सत्यवादी हरिश्चंद्र के पिता व सूर्यवंशी राजा त्रिवंधन के पुत्र सत्यव्रत,
जो त्रिशंकु के रूप में विख्यात हुए उन्हीं के लार से यह नदी अवतरित हुई।
तुझे याद करते -करते कोई ग़ज़ल मैं लिखूँ
तेरे साथ गुज़रा लम्हा हर एक पल मैं लिखूँ.
ये दौर किस तरह का,कौन बताएगा यहाँ
हर शख्स की बदलती हुई शकल मैं लिखूँ।
तेरे साथ गुज़रा लम्हा हर एक पल मैं लिखूँ.
ये दौर किस तरह का,कौन बताएगा यहाँ
हर शख्स की बदलती हुई शकल मैं लिखूँ।
मेरे पलकों तले एक दिल धड़कता है ख़ुद से पूंछ लेना तुम
मेरी पलकों पे अपने होंट रख, उन्हीं से पूंछ लेना तुम
ये दिल ही जानता है कौन चलता है इन पलकों तले
यकीं आ जायेगा तुमको , ये अपने दिल से पूंछ लेना तुम
मेरी पलकों पे अपने होंट रख, उन्हीं से पूंछ लेना तुम
ये दिल ही जानता है कौन चलता है इन पलकों तले
यकीं आ जायेगा तुमको , ये अपने दिल से पूंछ लेना तुम
कभी
गीली न हो
तेरी ऑंखें
मेरे इस
धुंए के
कारण
गीली न हो
तेरी ऑंखें
मेरे इस
धुंए के
कारण
धैर्य कडुवा लेकिन इसका फल मीठा होता है।
लोहा आग में तपकर ही फौलाद बन पाता है।।
एक-एक पायदान चढ़ने वाले पूरी सीढ़ी चढ़ जाते हैं।
जल्दी-जल्दी चढ़ने वाले जमीं पर धड़ाम से गिरते हैं।।
लोहा आग में तपकर ही फौलाद बन पाता है।।
एक-एक पायदान चढ़ने वाले पूरी सीढ़ी चढ़ जाते हैं।
जल्दी-जल्दी चढ़ने वाले जमीं पर धड़ाम से गिरते हैं।।
जल से बना शरीर
प्राण का यह आधार
बिन पानी मच जाए
जग में हाहाकार
मंदिर की ख़ामोशी देखी
मस्जिद भी खामोश थी
नफरत का बाजार सजा था
और सियासत चोर थी
प्राण का यह आधार
बिन पानी मच जाए
जग में हाहाकार
मंदिर की ख़ामोशी देखी
मस्जिद भी खामोश थी
नफरत का बाजार सजा था
और सियासत चोर थी
पहन हवाई चप्पलेँ, जाओगे जब मित्र
बरसातोँ मेँ पीठ पर, बन जायेगा चित्र
वर्षा के ही साथ मेँ, तेज़ हवा जब आय,
डर रहता इस बात का, छाता पलट न जाय
बरसातोँ मेँ पीठ पर, बन जायेगा चित्र
वर्षा के ही साथ मेँ, तेज़ हवा जब आय,
डर रहता इस बात का, छाता पलट न जाय
कितनी है
आकाश की उँचाई
और धरती की गहराई
ये हम कल्पना कर सकते हैं
होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं
होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
कहीं ज्यादा है, कहीं पर कम है
समय के साथ
अब बंद कर दी है बात
बस चुप्पी में अपनी
चले हैं साथ साथ
धरी धरोहर सुधि सखी, मन में धीरज धार |
तन धीरज कैसे धरै, बता सखी सुकुमार ||
पोर - पोर थर-थर करे, प्रिय की सुधि से आज |
क्या भूलूं उन क्षणों से, हर पल प्रिय है 'राज' ||
कोई सीखे ज़रा इन भूली यादों से
वफ़ा क्या है ,कैसे निभाई जाती है
जब भी फुर्सत हो तुमे, बुला लो इनको
ये बिन कुछ पूछे ,बस दौड़ी चली आती हैं
आकाश की उँचाई
और धरती की गहराई
ये हम कल्पना कर सकते हैं
होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं
होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
कहीं ज्यादा है, कहीं पर कम है
समय के साथ
अब बंद कर दी है बात
बस चुप्पी में अपनी
चले हैं साथ साथ
धरी धरोहर सुधि सखी, मन में धीरज धार |
तन धीरज कैसे धरै, बता सखी सुकुमार ||
पोर - पोर थर-थर करे, प्रिय की सुधि से आज |
क्या भूलूं उन क्षणों से, हर पल प्रिय है 'राज' ||
कोई सीखे ज़रा इन भूली यादों से
वफ़ा क्या है ,कैसे निभाई जाती है
जब भी फुर्सत हो तुमे, बुला लो इनको
ये बिन कुछ पूछे ,बस दौड़ी चली आती हैं
एक विशेष बात तो कहना ही भूल गई
पवित्र महीना जिसे रमज़ान कहते हैं
प्रारम्भ हो गया है ज़ुमेरात से
अगला अंक...मैं कोशिश करूँगी
कि वो रमज़ान अंक हो
कोशिश....वादा नहीं
यशोदा