समस्या विकट है
अन्तर्जाल कुपित है
ऐसे में यशोदा
अन्तर्जाल कुपित है
ऐसे में यशोदा
किंचित व्यथित है
फिर भी प्रस्तुत है
इतरा कर चाँद का मौन यूँ पुकारा है
सब आशिक हमारे हैं कौन तुम्हारा है।
हर नूर हम से बरसे कि नूर ही हैं हम
चिलमन से न छुपे ऐसा रूप हमारा है।
सब आशिक हमारे हैं कौन तुम्हारा है।
हर नूर हम से बरसे कि नूर ही हैं हम
चिलमन से न छुपे ऐसा रूप हमारा है।
दरकते मुखौटों का लाक्षागृही षड्यंत्र
मुखौटे दरक रहे हैं। आकांक्षाएं धूमिल हुई जा रही हैं।
भस्मासुरों ने अपने ही प्रदेश को लाक्षागृह बनाने का षड्यंत्र जो रच दिया है,
विघटनकारी आतताई तो पहले से मौज़ूद थे,
मुखौटे दरक रहे हैं। आकांक्षाएं धूमिल हुई जा रही हैं।
भस्मासुरों ने अपने ही प्रदेश को लाक्षागृह बनाने का षड्यंत्र जो रच दिया है,
विघटनकारी आतताई तो पहले से मौज़ूद थे,
फिर फूटे बम
एक नहीं.. दो नहीं ....
दस-दस धमाके
एक के बाद एक ......
एक नहीं.. दो नहीं ....
दस-दस धमाके
एक के बाद एक ......
निगाहें शौक ने तिलिश्मे -हुस्न का क्या हंसीं मंज़र देखा
ठहर गई निगाहें वहीँ उसी वख्त जब उनका चेहरा देखा
ठहर गई निगाहें वहीँ उसी वख्त जब उनका चेहरा देखा
नन्हे पदचिंह, नन्हे पाँव
साथ चले, वोह मेरे साथ
लिखे रेत मैं, नए अध्याय
बिन जिनके मैं हुई अकेली
साथ हुए, तो हुई मैं पूरी
हैं वो टुकड़े दिल के मेरे ख़ास
साथ चले, वोह मेरे साथ
लिखे रेत मैं, नए अध्याय
बिन जिनके मैं हुई अकेली
साथ हुए, तो हुई मैं पूरी
हैं वो टुकड़े दिल के मेरे ख़ास
दुकान से बाहर आने पर मां ने बच्चे से कहा, जब तुझे टॉफियां लेने कोकहा गया,
तो मना कर दिया और जब दुकानदार ने टॉफियां दीं
तो इतनी सारी ले लीं। बच्चे ने मां से कहा, मां, मेरी मुट्ठी बहुत ही छोटी है, परंतु दुकानदार की मुट्ठी बहुत बड़ी है - मैं लेता तो कम मिलतीं।
तो मना कर दिया और जब दुकानदार ने टॉफियां दीं
तो इतनी सारी ले लीं। बच्चे ने मां से कहा, मां, मेरी मुट्ठी बहुत ही छोटी है, परंतु दुकानदार की मुट्ठी बहुत बड़ी है - मैं लेता तो कम मिलतीं।
कैंची कपड़े काटती,नींद काटती रात
चाकू सब्जी काटता,शब्द काटते बात
सिर्फ पुतलों के जलाने से फायदा क्या है?
दिल के रावण को जलाओ तो कोई बात बने।
“रूप” की धूप रहेगी न सलामत नादां,
इश्क का ध्यान लगाओ तो कोई बात बने।
चाकू सब्जी काटता,शब्द काटते बात
सिर्फ पुतलों के जलाने से फायदा क्या है?
दिल के रावण को जलाओ तो कोई बात बने।
“रूप” की धूप रहेगी न सलामत नादां,
इश्क का ध्यान लगाओ तो कोई बात बने।
भुंजे तीतर सा मेरा मन
वक्त की सलीब चढ़ता ही नहीं
कोई आमरस जिह्वा पर
स्वाद अंकित करता ही नहीं
वक्त की सलीब चढ़ता ही नहीं
कोई आमरस जिह्वा पर
स्वाद अंकित करता ही नहीं
वक़्त किसका गुलाम होता है
कब कहाँ किसके नाम होता है
कल तलक जिससे था गिला तुमको
आज किस्सा तमाम होता है
कब कहाँ किसके नाम होता है
कल तलक जिससे था गिला तुमको
आज किस्सा तमाम होता है
काहे करे अभिमान ओ बन्दे
रह जायेंगे यहीं सब धन्धे
क्या लाया था ?क्या ले जाना ?
माटी संग माटी हो जाना
तेरी आँखों का पानी खाली कर
अपनी अखियों का सावन बरसाना है !
तेरे हर गम को हर कर, अपना आप संवारना है
खुद को तुझ में समाने के लिए मुझे तेरी ज़रूरत है !!
एक पग तुमने बढ़ाया रास्ते मिलते गये ,
गुलमोहर की डालियों पर फूल से खिलते गये !
भावना की वादियों में वेदना के राग पर ,
एक सुर तुमने लगाया गीत खुद बनते गये !
बादलों का एक भी टुकड़ा
नहीं बचा आंखों में
सावन-भादों में बनाए बांधों के द्वार
खोल दिये हैं मैने
अंतर में बसी भागीरथी
रह जायेंगे यहीं सब धन्धे
क्या लाया था ?क्या ले जाना ?
माटी संग माटी हो जाना
तेरी आँखों का पानी खाली कर
अपनी अखियों का सावन बरसाना है !
तेरे हर गम को हर कर, अपना आप संवारना है
खुद को तुझ में समाने के लिए मुझे तेरी ज़रूरत है !!
एक पग तुमने बढ़ाया रास्ते मिलते गये ,
गुलमोहर की डालियों पर फूल से खिलते गये !
भावना की वादियों में वेदना के राग पर ,
एक सुर तुमने लगाया गीत खुद बनते गये !
बादलों का एक भी टुकड़ा
नहीं बचा आंखों में
सावन-भादों में बनाए बांधों के द्वार
खोल दिये हैं मैने
अंतर में बसी भागीरथी
मुन्नवर राणा
हमारी एसोशियेशन मुशायरा
दुबई-2012....
हमारी एसोशियेशन मुशायरा
दुबई-2012....
सादर
यशोदा
यशोदा