सर्व प्रथम आदिगुरु को नमन..
कल 5सितम्बर है
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिन
कल 5सितम्बर है
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिन
और ये दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है
वृक्ष पर लगे
पीले पत्ते से
एक बूढ़े ने पूछ लिया
बरसों हरा रहने के बाद
वृक्ष पर झूमने के बाद
पीलापन कैसा लगता है
उम्मीदों की मुंडेर पे
वक़्त विश्वास बन कर जब भी उतरा
जिंदगी परछाईं बन उसी की हो गई
सपनों को सौंप उसकी झोली में
खुद को इतना ऊंचा भी न उठा
न पाल खुदाई का फ़ितूर
ये इम्तिहान तेरा है, कि
दे अपने होने का भी सबूत
हर बार सोचती हूँ रहूँगी और सचेत
हर बार फिर भी ठगी रह जाती हूँ
ज़िंदगी तेरे समक्ष !
कि अब बस और नहीं
लफ्जो की है मज़बूरी
तुम नजरो से समझ जाओ
कहती है राधा रानी
मेरे कान्हा चले आओ
तन्हाइयो मैं
न मैं कोई अमृता हूँ
न कोई इमरोज़ मेरे
आस- पास
मैं हूँ बस मैं ही हूँ
पीले पत्ते से
एक बूढ़े ने पूछ लिया
बरसों हरा रहने के बाद
वृक्ष पर झूमने के बाद
पीलापन कैसा लगता है
उम्मीदों की मुंडेर पे
वक़्त विश्वास बन कर जब भी उतरा
जिंदगी परछाईं बन उसी की हो गई
सपनों को सौंप उसकी झोली में
खुद को इतना ऊंचा भी न उठा
न पाल खुदाई का फ़ितूर
ये इम्तिहान तेरा है, कि
दे अपने होने का भी सबूत
हर बार सोचती हूँ रहूँगी और सचेत
हर बार फिर भी ठगी रह जाती हूँ
ज़िंदगी तेरे समक्ष !
कि अब बस और नहीं
लफ्जो की है मज़बूरी
तुम नजरो से समझ जाओ
कहती है राधा रानी
मेरे कान्हा चले आओ
तन्हाइयो मैं
न मैं कोई अमृता हूँ
न कोई इमरोज़ मेरे
आस- पास
मैं हूँ बस मैं ही हूँ
कैसा तिलिस्म
है उनकी
चाहत का, जिस्म तो सिर्फ़ जिस्म है इक शै
फ़ानी, जुनूं देखें कि हम रूह तक भुला
बैठे, उन्हें ख़बर ही नहीं, और
हम दुनिया भुला बैठे
है उनकी
चाहत का, जिस्म तो सिर्फ़ जिस्म है इक शै
फ़ानी, जुनूं देखें कि हम रूह तक भुला
बैठे, उन्हें ख़बर ही नहीं, और
हम दुनिया भुला बैठे
उपासना में वासना, मुख में है हरिनाम।
सत्संगों की आड़ में, करते गन्दे काम।।
सत्संगों की आड़ में, करते गन्दे काम।।
एकांत में एकदम चुप
कँपते ठंडे पड़े हाथों को
आपस की रगड़ से गरम करती
वो शांत है
ना भूख है
ना प्यास है
कँपते ठंडे पड़े हाथों को
आपस की रगड़ से गरम करती
वो शांत है
ना भूख है
ना प्यास है
चांदनी ने
न जाने कब
ख़त लिखे थे
ख्वाबों के नाम
पर पता भूल गयी
दो दिन जुटेंगे मज़ार पर
तेरे चाहने वाले
दिन चार चक्कर लगायेंगे
दुआ मांगने वाले
हम अपना हाल उनको बताने से रह गए...
आई जुबां पे बात सुनाने से रह गए...!!
उसको थी ये खबर कि मेरा दिल उदास है...
इस बार वो नज़र से गिराने में रह गए...!!
अब तक नहीं आयी
कहां तू लुकाई
भूख ने पेट में
हलचल मचाई माँ !...
ओ माँ !!...
ओ माँ !!!
कल सारी रात, तेरे तस्सवुर की भट्टी पर
मेरे नज़्मों की, शबदेग पकती रही
तुम्हारे होने का एहसास
भट्टी में ईधन लगाता रहा
कभी कुछ अच्छा सुनाई दे तो
अच्छा कहा जाये !
सुन कब तक
शरम का लबादा
ओढे़ तू रहेगा
हमाम में भी
कपडे़ पहन कर
चला आता है
अक्सर ऐसा हुआ है
बहुत कोशिशों के बाद
जब उसे मैं छू न सका
सो गया मूँद कर आँखें अपनी
आज के लिये बस
अपनी क्षमता का खयाल आ गया
कि बस इससे जियादा
पढ़ना-लिखना
मेरे बस नहीं
यशोदा
एक भजन सुनिये
अक्सर आसाराम इसे सुना करते हैं
न जाने कब
ख़त लिखे थे
ख्वाबों के नाम
पर पता भूल गयी
दो दिन जुटेंगे मज़ार पर
तेरे चाहने वाले
दिन चार चक्कर लगायेंगे
दुआ मांगने वाले
हम अपना हाल उनको बताने से रह गए...
आई जुबां पे बात सुनाने से रह गए...!!
उसको थी ये खबर कि मेरा दिल उदास है...
इस बार वो नज़र से गिराने में रह गए...!!
अब तक नहीं आयी
कहां तू लुकाई
भूख ने पेट में
हलचल मचाई माँ !...
ओ माँ !!...
ओ माँ !!!
कल सारी रात, तेरे तस्सवुर की भट्टी पर
मेरे नज़्मों की, शबदेग पकती रही
तुम्हारे होने का एहसास
भट्टी में ईधन लगाता रहा
कभी कुछ अच्छा सुनाई दे तो
अच्छा कहा जाये !
सुन कब तक
शरम का लबादा
ओढे़ तू रहेगा
हमाम में भी
कपडे़ पहन कर
चला आता है
अक्सर ऐसा हुआ है
बहुत कोशिशों के बाद
जब उसे मैं छू न सका
सो गया मूँद कर आँखें अपनी
आज के लिये बस
अपनी क्षमता का खयाल आ गया
कि बस इससे जियादा
पढ़ना-लिखना
मेरे बस नहीं
यशोदा
एक भजन सुनिये
अक्सर आसाराम इसे सुना करते हैं