नमस्कार!
फिर आ गया एक और रविवार.....ऐसे ही जाने कितने रविवार आने बाकी हैं अभी।
तो चलिये आज के लिंक्स की सैर पर-
नज़रें मिली ,
जब उनकी ,
कंघी की ओट से ,
लगा कंघी में ,
अरझे हों जैसे ,
जुगनू कई ,
किसी की रोजी तो किसी की रोटी है नौकरी
कोशिशें हज़ार करके भी नहीं मिलती नौकरी
किस्मत में नहीं..तो कहीं किस्मत चमकाती है नौकरी
किसी का गौरव है ऊंचे औहदे की नौकरी
स्वीकार है अपनी नियति
नहीं शिकायत किसी परीक्षा से
और न ही कोई आकांक्षा
किसी अपेक्षित परिणाम की,
केवल है इंतज़ार
उस अंतिम परीक्षा का
मिलेगी जब मुक्ति
सब परीक्षाओं से.रंगीं पैरहन एक हसीं गुलिस्तां सा लगता रहा
तुमको चुनना साइड इफेक्ट लेकर भी आता रहा
इक उम्र ही तो गुज़ारी है, जानता हूं मैं अपने बदन को
तू मुझको वहां से छू जहां से मैं अनजान हूं अबके
तुमको चुनना साइड इफेक्ट लेकर भी आता रहा
इक उम्र ही तो गुज़ारी है, जानता हूं मैं अपने बदन को
तू मुझको वहां से छू जहां से मैं अनजान हूं अबके
इंसान जहां रहता है, वहाँ की महत्ता से दूर ही रहता है… जाने ऐसा क्यूँ है कि छूट जाने के बाद ही समझ आती है, चाहे वो ज़िन्दगी हो… चाहे वो स्थानविशेष हो...! रिश्ते नातों को लेकर भी तो हमारा रवैया कुछ ऐसा ही है, लोगों की कद्र भी तो उनके न होने पर ही किये जाने की विचित्र परिपाटी है इस जग में और इसी परिपाटी का निर्वहन हम किये चले जाते हैं.…
'जब तक जियो मौज से जियो -घी पियो चाहें उधार ले के पियो ' सिद्धान्त के अनुगामी यंत्रवत ज़िंदगी जीते हैं और इसी में मस्त रहते हैं। नतीजा उनके मन-मस्तिष्क,शरीर को विकृत करने के रूप में सामने आता है। यदि पहले ही सचेत रह कर कुछ सावधानियाँ बरती जाएँ तो इन विकारों से बचा जा सकता है।
~यशवन्त