नमस्कार _/\_
आज यशोदा दीदी कुछ व्यस्त हैं अतः आज की प्रस्तुति भी मेरे ही द्वारा।
एक बात स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मैं यहाँ लिंक्स की संख्या कम इसलिए रखता हूँ जिससे कि आप लोग सभी को आसानी से पढ़ सकें। और टिप्पणी बॉक्स इसलिए बंद रखता हूँ कि मेरी नज़र मे हलचल पर टिप्पणी देना आवश्यक नहीं है बल्कि यदि आप दिये गए लिंक्स पर जा कर अपने विचार देंगे तो नये व स्थापित अन्य ब्लोगर्स को प्रोत्साहन मिल सकेगा।
हम से संपर्क करने के लिये आप साइड बार मे दिये गए कोंटेक्ट फॉर्म का प्रयोग कर सकते हैं या yashwant009@gmail.comपर अपनी प्रतिक्रिया /सुझाव आदि दे सकते हैं।
तो आज के लिंक्स की शुरुआत एक नये ब्लॉग से -
आज यशोदा दीदी कुछ व्यस्त हैं अतः आज की प्रस्तुति भी मेरे ही द्वारा।
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पेड़ ने पढाया पाठ
हम भी पेड़ की तरह अपनी पुरानी यादों को ज़िन्दगी से निकाल सकते तो हमेशा दुखी ना रहते. एक वक़्त आता है जब अगर दुःख देने वाली यादों को ना निकाला जाये तो अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है.
पेड़ ने पढाया पाठ
हम भी पेड़ की तरह अपनी पुरानी यादों को ज़िन्दगी से निकाल सकते तो हमेशा दुखी ना रहते. एक वक़्त आता है जब अगर दुःख देने वाली यादों को ना निकाला जाये तो अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है.
कोई छाती का द्वार खटखटाता है
नाखूनों से दीवार को खरोंचता है
और लगता है, कोई दबे पांव
घर की छत पर जा रहा है ...
तीन बार उठकर - मैंने सांकल टटोली
अंधेरा -कभी कुछ कहता-सा लगता था
नाखूनों से दीवार को खरोंचता है
और लगता है, कोई दबे पांव
घर की छत पर जा रहा है ...
तीन बार उठकर - मैंने सांकल टटोली
अंधेरा -कभी कुछ कहता-सा लगता था
जाने क्या चाहती है याद उसकी,
पास आती है, लौट जाती है.
रब्त हमको है इस ज़मीं से, हमें,
इस ज़मीं पर ही नींद आती है.
पास आती है, लौट जाती है.
रब्त हमको है इस ज़मीं से, हमें,
इस ज़मीं पर ही नींद आती है.
आंगन के ठीक पीछे
एक छोटी सी बगिया
जहां नीम, अनार, पपीते फलते
बैंगन, र्मिची, मूली भी मुस्काते थे
मगर आंगन में खिले
खूब सारे महमहाते बेली की कलियों से
हार मान जाते थे
एक छोटी सी बगिया
जहां नीम, अनार, पपीते फलते
बैंगन, र्मिची, मूली भी मुस्काते थे
मगर आंगन में खिले
खूब सारे महमहाते बेली की कलियों से
हार मान जाते थे
मैं कब तन्हा हुआ था, याद होगा
तुम्हारा फ़ैसला था, याद होगा
लिए हाथों में कुछ मैं फूल उजले
कभी तुमसे मिला था, याद होगा
तुम्हारा फ़ैसला था, याद होगा
लिए हाथों में कुछ मैं फूल उजले
कभी तुमसे मिला था, याद होगा
मिट्टी से लिपा चुल्हा
चुल्हे में सुलगती लकड़ियाँ
उसकी आँच में सिकी हुई
माँ के हाथों की
गरम रोटियाँ
गरम रोटियाँ
बहुत याद आते हैं..वो दिन
खमोशी के पन्नो पर बचपन की याद लिख दे,
इन अनसुनी राहो पर आज कोई फरियाद लिख दे,
वो कोमल सी निष्पाप हँसी,
वो खिलखिलाता सा मन,
ना जाने इन यादो में,
कैसे खो गया बचपन
इन अनसुनी राहो पर आज कोई फरियाद लिख दे,
वो कोमल सी निष्पाप हँसी,
वो खिलखिलाता सा मन,
ना जाने इन यादो में,
कैसे खो गया बचपन
~यशवन्त