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मैं खुश हूं इस धरा पर...

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नमस्कार!
आज पुनः यशोदा दीदी कुछ व्यस्त हैं।
शनिवारीय हलचल में आपका स्वागत है इन चुने हुए लिंक्स के साथ-

मैं खुश हूं इस धरा पर...

पाप करें या पुन्य कमाएं,
मंदिर या मधुशाला जाएं,
बुद्धि, विवेकसे सोचना है ये,
मैं खुश हूं इस धरा पर...

 


कोई तुच्छ भेटों से ही प्रफुल्लित
कोई शरीर सुख को डोल जाता
कोई स्वर्ग लोलुप वृथा कर समय  
स्वप्नों में खोकर जीवन बिताता


एक बूंद का दामन.....
कि‍स बात पे हैरां हो तुम 
कि‍स बात पे है ये खामोशी 

मतलब पड़ने पर ही दुनि‍यां
 

कि‍या करती है कदमब़ोसी

बहुत घूमे बहुत भटके
कहाँ-कहाँ नहीं अटके,
 बहुत रचाए खेल-तमाशे
बहुत कमाए तोले माशे !
अब तो यहाँ से टलें
चलो अब घर चलें 


हिन्दी दिवस पर कवि सम्मेलन
विदेश घूमकर आये कवि का कवितापाठ थोड़ा लम्बा हो जाता है। वो कविता के पहले, बीच में, किनारे, दायें, बायें अपने विदेश में कविता पाठ के किस्से सुनाना नहीं भूलता। सौ लोगों के खचाखच भरे हाल में काव्यपाठ के संस्मरण सालों सुनाता है। फ़िर मुंह बाये , जम्हुआये श्रोताओं की गफ़लत का फ़ायदा उठाकर अपनी सालों पुरानी कविता को -अभी ताजी, खास इस मौके पर लिखी कविता बताकर झिला देता है। 

"It is very easy to label someone wrong, wicked worthless or bad, it is very easy to be judgmental which we are most of the time about most of the things, about most people. But later when we spend some more time and re-evaluate, we regret our judgement. We realize we were either impulsive or were thoughtlessly following others. "
 

~यशवन्त

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