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हम अब भी गुलाम हैं अंग्रेजियत के........शनिवारीय हलचल

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हमारी सोच आज तक आजाद नही न हुई
अब ये देखो कि....
31 दिसम्बर की तैय्यारियाँ
हम हफ्तों पहले करते हैं
मगर हिन्दू नव वर्ष...
मानो चुपके से आ जाता है
वास्तव में...
हम अब भी गुलाम हैं अंग्रेजियत के


पांचवे जन्म दिन की शुभकामनाएँ
नवसंवत्सर शुभकामनायें-------         









या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता ।          
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्यै नमो नमः॥                         
नव वर्ष---नवसंवत्सर                          
की हार्दिक शुभकामनायें







"कथा की व्यथा"
हां!
मैं जानती हूं,
जो प्रबल प्रेम में होता है,
उसका मन
बावरा सा हो जाता है





क्या खूब अपार्टमेन्ट बनाया है 'खुदा' ने
हर एक माले की, है अपनी अपनी खूबी ?
शर्त तुम्हारी, पद हमारा
कहो अब क्या कहना है ?


सफ़हे में लिपटी है, लम्हों की बातें,
लम्हों की बातें, सदियों की बातें।
बातें, जो पूरी हुई ही नहीं,
बातें, जो अधूरी रह गयी।



जिंदगी का फलसफ़ा
ज़िंदगी हारना आसान है जीना कठिन।
जीवन एक आग का दरिया है ,
पार कर जाना थोड़ा कठिन है ,
पर असंभव नहीं ।



दिल में अरमान जल रहे कितने
नए सपने भी पल रहे कितने
एक गिरगिट ने खुदकुशी कर ली
रंग इन्सां बदल रहे कितने




तो क्या करें?
प्रश्न उठाना छोड़ दें,
या तोड़ दें उन रवायतों को
जो उठ खड़ी होती हैं हर बार
औरतों के विरुद्ध
उनके अधिकारों के प्रश्न पर,





सीख लिया, सीख लिया;
आखिर मैंने सीख लिया.
अपना ग़म भुला के मैंने,
आँसू छुपाना सीख लिया…!



अब तो आबे-हयात फीके से

हो गये फ़ाकेहात फीके से।
आज के इख़्तिलात फीके से॥
हसीन मिस्ले-शहर मयख़ाने,
लगते अब घर, देहात फीके से।



मूढ़ कहाँ छिछले में खड़ा है,
छिछले में लहरें भी टूटती हैं और आशायें भी।
टूटी लहरें भी आपको चोट पहुँचाती हैं
और टूटी आशायें भी। लहरों के थपेड़ों ने
और अन्दर आने के लिये उकसाया,
जहाँ लहरें टूटती नहीं थीं वरन डुलाती थी,
ऊपर नीचे, आनन्द में।




मस्जिद में जी लगा न, तो मंदर में आ गए
हुस्न-ए-बुतां के फेर में, चक्कर में आ गए
उस  हुस्न-ए-कन्हैया की क्या बात कहें हम
सारे तसव्वुरात इक बहर में आ गए



माँ का सामना करते ही आँखे भीग गई थीं ...
उसकी खामोशी को पढ़कर
माँ ने कहना शुरू किया मैं जानती हूँ
तुम कहना चाहती हो
बहुत कुछ पर कह नहीं पाओगी,
हर बार की तरह
इस बार भी
तुम्‍हारी खामोशी ने ढेरों सवाल
मेरे आगे कर दिये हैं,


'वो'
उसका आखिरी गीत था,
कल से उसे
अपने पंखों को विराम देना था,
अपने सपनो की
रफ़्तार रोकनी थी,


तो ....
शादी आगरा का पेठा ....
जो खाये वो भी पछताए ....
जो ना खाये वो भी पछताए ...
जब खा ही लिए ....
तो ....
क्यूँ पछताए ....




ऋता शेखर मधु
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, मिले जगत को प्राण
नवसंवत्सर आज है, हरषित हुए कृषाण
कृषाण - किसान के अर्थ में लिया गया है

जिमें केशरी भात अरु, बोलें मीठे बोल
गुड़ी पड़वा कहे हमें, मिलें सदा दिल खोल



चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया       
जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया



यहाँ मुस्तक़बिल मरा था कोई...
इस अधनन्गे हड्डी के ढाँचे सी इमारत में...
ख्वाब उछलते थे दिन भर...
नन्ही नन्ही मुस्कानो, किल्कारियों वाले ख्वाब...
एक ही सुर में पाठ कोई चिल्लाते थे सब...
जैसे कोई शंख बजा हो...




मैं ठोकर खाके गिर जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता
गिर कर उठ नहीं पाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता
तुम हँसते हो परे होकर, किनारे पर खड़े होकर
मैं रोकर हँस नहीं पाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता


 
अभी- अभी एक नये ब्लाग में गई थी
उस ब्लाग की एक रचना शेयर करने की
प्रबल इच्छा रोक नहीं पा रहीं हूँ
लीजिये प्रस्तुत है....निधि दीदी को अब तक दूर से देखा थी
आज काफी नज़दीक से देखा उन्हें......

स्याह सी खामोशियों के
इस मीलों लंबे सफर में
तन्हाइयों के अलावा..
साथ देने को दूर-दूर तक
कोई भी नज़र नहीं आता

आज बस......
आप सभी को भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं....
माता रानी की विशेष कृपा आप सभी पर सदा सर्वदा बनी रहे.......
यही मनोकामना है
यशोदा















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