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****जिवन का गीत***आज की हलचल

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***आप सब को कुलदीप का प्यार भरा नमस्कार****
***मैं एक बार फिर हाजिर हूं****
***नयी पुरानी हलचल के एक और अंक के साथ।****


कल श्री गुरुनानक देव जी का  प्रकाश उत्सव   था। जिन्होंने कभी मानव, मानव में भेद नहीं किया आज हमने उन्हे केवल एक धर्म तक सीमित कर दिया। उनका संदेश केवल चंद लोगों के लिये नहीं था अपितु सकल मानव जाती के लिये था।


****"जीवन का गीत" ******(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

देश-वेश और जाति-धर्म का ,
मन में कुछ भी भेद नहीं।
भोग लिया जीवन सारा,
अब जाने का भी खेद नहीं


****साथ तेरे बिन**** सरिता भाटिया

पलकें तेरे इंतज़ार में खुली रहेंगी
तेरे दीदार बिन हमें मरने न देंगी ||
साथी तेरे बिन बहुत अधूरे हैं हम
तुम जो चले आओ तो पूरे हैं हम 


****बात इतनी समझिये*****निर्दोष दीक्षित

इस दौर में जो चाहिए सर-ज़र की सलामती
रखिये शक़ की नज़र औ सेर को सवा सेर समझिये
दुआ होती है क़ुबूल ग़र मर्ज़ी हो ख़ुदा की
इस दिल में ही काशी और अजमेर समझिये


                            ****यह देश है मेरा यह देश है मेरा******Ranjana Verma 

                             विवेकानंद ने पूरे विश्व को
                             धर्म का मतलब समझाया जहाँ
                             अहिंसा जहाँ का परम धर्म  हो
                             सत्यवादी हो हरिश्चन्द्र जैसा


******कभी तो**** महेंद्र मिश्र
कहीं घूरों पे कुत्तों से टुकड़ों की झडपें
अस्पतालों के बाहर दवाई को तड़पें
खाने को केवल जिन्हें गम हैं अभी  
उनके भी हलकों में निवाला होगा
कभी तो बस्तियों मे उजाला होगा


****नींद आए न तुझे****Suresh Swapnil

जान     बच     जाए      बेगुनाहों  की
काश!  क़ातिल  को   हया  लग  जाए
वो:  तेरा  अक्स  लगेगा   जिस  दिन
चांद    को     रंगे-हिना      लग  जाए



*****आज सड़कों पर****(दुष्यंत कुमार)

वे सहारे भी नहीं, अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख...
राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई,
राख में चिनगारियां ही देख, अंगारे न देख...


*****कहां खो गए हो तुम********रश्मि शर्मा

जीवन का ये पहला दि‍न है....जब तुम नहीं हो...कहीं भी...मेरे आसपास....
जाने क्‍यों मन कहता है....अकेली हो गई हो तुम....

 ****हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????***** प्रवीण गुप्ता 'हिंदू'

इसके बाद ....... राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया..... और, वही "भारतवर्ष"कहलाया.........


***आज बस इतना ही***
***हलचल  यहां हर रोज सब से पहले  होती है***
***बस आप सब का स्नेह मिलता रहे***
****धन्यवाद***



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