नयी पुरानी हलचल का यह शनिवारीय अंक...
आपके पास पहुँचते-पहुँचते..
अपनी चरम उँचाइयों को
छूने को तत्पर है
चलिये चलते हैं नयी पुरानी रचनाओं की ओर....
ख्वाहिशें झाँकती हैं बन के ख्व़ाब !!!!!
अंज़ाम की परवाह
बिना किये जब
जिंदगी के साथ चलता है कोई
कदम से कदम मिलाकर तो
जीने का सलीक़ा आ जाता है
'ससुराल में ठीक से रहना बेटी'।
अब स्नेहा से बरदाश्त नहीं हुआ। देर से छलक रही आँखों से आँसुओं की धार बह चली। धीरे धीरे उसे महसूस हुआ कि पिता के हाथों की पकड़ ढीली होती जा रही है।
हमें
कमजोर समझने की
गलती मत करना
हम अपनी पे आ जाएँ तो
धरती और आकाश
दोनों मिल कर भी कम पड़ेंगे
इंतज़ार कि घड़ियाँ
गिनते - गिनते ,
प्रीत कि ओढ़नी ओढे
मन दुल्हन सा हो गया है ,
लड़खड़ाता हूँ
मगर गिरता नहीं हूँ
मन मचलता है
मगर पथ से
भटकता नहीं हूँ
मुझे रचती है जो कविता
रोंये भी खिलखिलाते है
कलम हॅस हॅस के कहती है
तम्हे ये गुर भी आते है
पूस की वो रात
ठिठुरते हुए तारे
शांत माहौल
आँख मिचौली
खेलता बादलों के पीछे छिपा चाँद
जब सूरज की रोशनी ,
ऊपर ही ऊपर बंट जाती है,
और जमीन के लोगों तक नहीं पहुँच पाती है
तो गरीबों की सर्द आहें ,एकत्रित होकर ,
फैलती है वायुमंडल में ,
और आज के अंतिम दो रेखांकित पोस्ट के साथ
विदा मांगती है यशोदा......
एक कागज़ के टुकड़े का,
इस ज़माने में,
माँ से ज़्यादा मोल हो गया है।
एक कागज़ के टुकड़े से
दुनिया मुट्ठी में आ सकती है।
पाखी लिटिल ब्लॉगर
365 पोस्ट-268 फालोअर.........मिला ब्लागर अवार्ड
पाखी के नाम से मशहूर अक्षिता यादव कैसे बनी ब्लॉगर और क्या हैं उसके शौक.....ऐसे हुई ब्लागिंग की शुरुआत दरअसल, बचपन से ही वह ढेरों पेंटिंग्स बनाती थी। लेकिन उसके मम्मी-पापा उसे सहेजते नहीं थे। ऐसे में जब पाखी ने अपने मम्मा-पापा को ब्लॉग पर कविताएं लिखते देखा तो पूछ लिया कि ’जब आप अपनी कविताएं इस तरह संभाल रहे है, तो मेरी पेटिंग्स क्यों फेंक देते हैं?’
अपनी चरम उँचाइयों को
छूने को तत्पर है
चलिये चलते हैं नयी पुरानी रचनाओं की ओर....
ख्वाहिशें झाँकती हैं बन के ख्व़ाब !!!!!
अंज़ाम की परवाह
बिना किये जब
जिंदगी के साथ चलता है कोई
कदम से कदम मिलाकर तो
जीने का सलीक़ा आ जाता है
'ससुराल में ठीक से रहना बेटी'।
अब स्नेहा से बरदाश्त नहीं हुआ। देर से छलक रही आँखों से आँसुओं की धार बह चली। धीरे धीरे उसे महसूस हुआ कि पिता के हाथों की पकड़ ढीली होती जा रही है।
हमें
कमजोर समझने की
गलती मत करना
हम अपनी पे आ जाएँ तो
धरती और आकाश
दोनों मिल कर भी कम पड़ेंगे
इंतज़ार कि घड़ियाँ
गिनते - गिनते ,
प्रीत कि ओढ़नी ओढे
मन दुल्हन सा हो गया है ,
लड़खड़ाता हूँ
मगर गिरता नहीं हूँ
मन मचलता है
मगर पथ से
भटकता नहीं हूँ
मुझे रचती है जो कविता
रोंये भी खिलखिलाते है
कलम हॅस हॅस के कहती है
तम्हे ये गुर भी आते है
पूस की वो रात
ठिठुरते हुए तारे
शांत माहौल
आँख मिचौली
खेलता बादलों के पीछे छिपा चाँद
जब सूरज की रोशनी ,
ऊपर ही ऊपर बंट जाती है,
और जमीन के लोगों तक नहीं पहुँच पाती है
तो गरीबों की सर्द आहें ,एकत्रित होकर ,
फैलती है वायुमंडल में ,
और आज के अंतिम दो रेखांकित पोस्ट के साथ
विदा मांगती है यशोदा......
एक कागज़ के टुकड़े का,
इस ज़माने में,
माँ से ज़्यादा मोल हो गया है।
एक कागज़ के टुकड़े से
दुनिया मुट्ठी में आ सकती है।
पाखी लिटिल ब्लॉगर
365 पोस्ट-268 फालोअर.........मिला ब्लागर अवार्ड
पाखी के नाम से मशहूर अक्षिता यादव कैसे बनी ब्लॉगर और क्या हैं उसके शौक.....ऐसे हुई ब्लागिंग की शुरुआत दरअसल, बचपन से ही वह ढेरों पेंटिंग्स बनाती थी। लेकिन उसके मम्मी-पापा उसे सहेजते नहीं थे। ऐसे में जब पाखी ने अपने मम्मा-पापा को ब्लॉग पर कविताएं लिखते देखा तो पूछ लिया कि ’जब आप अपनी कविताएं इस तरह संभाल रहे है, तो मेरी पेटिंग्स क्यों फेंक देते हैं?’