काश...........
ये दुनिया पहले ही...........
ख़त्म हो जाती,
कम से कम.............. .
ये दरिंदगी तो नहीं होती,
विष से प्राप्त अमृत,
दूषित स्थान से प्राप्त सोना,
और मंगलकारी स्त्री को
भार्या के रूप में स्वीकार करना चाहिए
भले निम्न परिवार से हो
और ऐसी पत्नी से प्राप्त
ज्ञान को भी स्वीकार करना चाहिए',
विचारों के अभिप्रायों को निकलने नहीं देना चाहिए
उन्हें एक गुप्त मन्त्र की तरह प्रयुक्त करना चाहिए,
कुछ शब्द चोटिल हैं,
कुछ के मन में दर्द है अभिव्यक्ति का,
हाथ में कलम हो तो
सबसे पहले खींच लो एक हद़ की लक़ीर
जिसे ना लांघा जा सके यूँ सरेआम
बना लो ऐसा कोई नियम
कि फिर पश्चाताप की अग्नि में ना जलना पड़े
ना बहन थी ….
ना बेटी हुई ….
बहुत नाज़ों से ,
पाल रही थी ,
एक पोती की
नाज़ुक तमन्ना ….
मर्यादित मिठास
आठ - नौ साल की बच्ची
माँ की उंगली थाम
आती है जब मेरे घर
और उसकी माँ
उसके हाथों में
किताब की जगह
पकड़ा देती है झाड़ू
तब दिखती है मुझे कविता ।
दूषित स्थान से प्राप्त सोना,
और मंगलकारी स्त्री को
भार्या के रूप में स्वीकार करना चाहिए
भले निम्न परिवार से हो
और ऐसी पत्नी से प्राप्त
ज्ञान को भी स्वीकार करना चाहिए',
विचारों के अभिप्रायों को निकलने नहीं देना चाहिए
उन्हें एक गुप्त मन्त्र की तरह प्रयुक्त करना चाहिए,
कुछ शब्द चोटिल हैं,
कुछ के मन में दर्द है अभिव्यक्ति का,
हाथ में कलम हो तो
सबसे पहले खींच लो एक हद़ की लक़ीर
जिसे ना लांघा जा सके यूँ सरेआम
बना लो ऐसा कोई नियम
कि फिर पश्चाताप की अग्नि में ना जलना पड़े
ना बहन थी ….
ना बेटी हुई ….
बहुत नाज़ों से ,
पाल रही थी ,
एक पोती की
नाज़ुक तमन्ना ….
मर्यादित मिठास
आठ - नौ साल की बच्ची
माँ की उंगली थाम
आती है जब मेरे घर
और उसकी माँ
उसके हाथों में
किताब की जगह
पकड़ा देती है झाड़ू
तब दिखती है मुझे कविता ।
माँ का उन पर बहुत विश्वास है |
माँ ने ही मुझे भी उनसे जोड़ दिया है |
उनका एक छोटा मंत्र बोलना भी सीखा है :)
हनुमान जयंती की शुभकामनायें ।
एक छोटी सी सिफारिश करती हूँ,
की या तो ये दरिंदगी मिटा दो,
या सारी बेटियों को मौत की नींद सुला दो।।
हाँ मैं शर्मिंदा हूँ !
क्योंकि मैं पुरुष हूँ, क्योंकि मैं भारतीय हूँ
हाँ मैं शर्मिंदा हूँ !
क्योंकि मैं निवासी हूँ उस शहर का
जहां महफूज नहीं है, "मासूम बच्ची" भी
हाँ मैं शर्मिंदा हूँ !
क्योंकि मैं पुरुष हूँ, क्योंकि मैं भारतीय हूँ
हाँ मैं शर्मिंदा हूँ !
क्योंकि मैं निवासी हूँ उस शहर का
जहां महफूज नहीं है, "मासूम बच्ची" भी
इंसान नज़र आते न अब मेरे शहर में.
अहसास मर गए हैं, इंसां हैं मुर्दों जैसे,
इक बू अज़ब सी आती है मेरे शहर में.
अभी लोग दामिनी कांड को भूले भी नहीं थे
कि एक और शर्मनाक वाक्या हो गया (गुड़िया)।
ना जाने क्या हो गया है दिल्ली वालों को,
बल्कि अकेली दिल्ली ही क्यूँ,
हमारे समाज में ऐसे अपराधों की वृद्धि
दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही है।
फिर क्या दिल्ली, क्या मुंबई और क्या बिहार,
कि एक और शर्मनाक वाक्या हो गया (गुड़िया)।
ना जाने क्या हो गया है दिल्ली वालों को,
बल्कि अकेली दिल्ली ही क्यूँ,
हमारे समाज में ऐसे अपराधों की वृद्धि
दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही है।
फिर क्या दिल्ली, क्या मुंबई और क्या बिहार,
हर लम्हा मुसलसल हैं |
दो दिलों में लेकिन,
जिंदिगी सा इंतज़ार [...]
गम और खुशियाँ दोनों है साथ,
एक तराजू के दो पलड़े जैसे ।
आज आँसू है तो ,
कल मुसकुराती आंखे भी होगी ।
चारों तरफ अजीब आलम हादसों में पल रही है जिंदगी,
फूलों के शक्ल में अंगारों पर चल रही है जिंदगी.
आदमी खूंखार वहसी हो गए हैं इस जमाने में,
दूध साँपों को पिलाकर खुद तड़प रही है जिंदगी.
तुम कभी भी अपने
प्यार का इजहार
नहीं करते हो
वैसे भी प्यार
जतलाने की नहीं
महसूस करने की है
तुम कभी भी अपने
रात कस कर गाँठ लगी
अपने ख़्वाबों की पोटली को
बड़े जतन से एक बार फिर
मैंने खोला है !
फूलों के शक्ल में अंगारों पर चल रही है जिंदगी.
आदमी खूंखार वहसी हो गए हैं इस जमाने में,
दूध साँपों को पिलाकर खुद तड़प रही है जिंदगी.
तुम कभी भी अपने
प्यार का इजहार
नहीं करते हो
वैसे भी प्यार
जतलाने की नहीं
महसूस करने की है
तुम कभी भी अपने
रात कस कर गाँठ लगी
अपने ख़्वाबों की पोटली को
बड़े जतन से एक बार फिर
मैंने खोला है !
आज भी
मुट्ठी बंद करती हूँ तो
एक बड़ी सी उंगली
महसूस होती है हथेलियों में
जिसको पकड़ कर कभी
चलना सीखा था
मुट्ठी बंद करती हूँ तो
एक बड़ी सी उंगली
महसूस होती है हथेलियों में
जिसको पकड़ कर कभी
चलना सीखा था
सिर्फ नारे हैं यहाँ
कोई ज़िंदाबाद है
कोई मुर्दाबाद है
कहीं जुलूस हैं
हाथों में तख्तियाँ हैं
मोमबत्तियाँ हैं
कोई ज़िंदाबाद है
कोई मुर्दाबाद है
कहीं जुलूस हैं
हाथों में तख्तियाँ हैं
मोमबत्तियाँ हैं
वो जो है
"हमराह"
मेरी खुशियों का,
मेरे गमों का,
मेरे हर आंसू और मुस्कान का,...
जब सुन्न हो जाता है कोई अंग
महसूस नहीं होता कुछ भी
न पीड़ा न उसका अहसास
बस कुछ ऐसी ही स्थिति में
मेरी सोच
मेरे ह्रदय के स्पंदन
सब भावनाओं के ज्वार सुन्न हो गए हैं
चाँद से भी खूबसूरत है तुम्हारा चेहरा
हमने सौ बार निगाहों में उतारा चेहरा,
सबकी नजरों से महफिल में बचाकर नजरें
चुपके - चुपके से हर नजर ने निहारा चेहरा,
ये थका-थका सा जोश मेरा, ये ढला-ढला सा शबाब है
तेरे होश फिर भी उड़ गए, मेरा हुस्न क़ामयाब है
ये शहर, ये दश्त, ये ज़मीं तेरी, हवा सरीखी मैं बह चली
तू ग़ुरेज न कर मुझे छूने की, मेरा मन महकता गुलाब है
"हमराह"
मेरी खुशियों का,
मेरे गमों का,
मेरे हर आंसू और मुस्कान का,...
जब सुन्न हो जाता है कोई अंग
महसूस नहीं होता कुछ भी
न पीड़ा न उसका अहसास
बस कुछ ऐसी ही स्थिति में
मेरी सोच
मेरे ह्रदय के स्पंदन
सब भावनाओं के ज्वार सुन्न हो गए हैं
चाँद से भी खूबसूरत है तुम्हारा चेहरा
हमने सौ बार निगाहों में उतारा चेहरा,
सबकी नजरों से महफिल में बचाकर नजरें
चुपके - चुपके से हर नजर ने निहारा चेहरा,
ये थका-थका सा जोश मेरा, ये ढला-ढला सा शबाब है
तेरे होश फिर भी उड़ गए, मेरा हुस्न क़ामयाब है
ये शहर, ये दश्त, ये ज़मीं तेरी, हवा सरीखी मैं बह चली
तू ग़ुरेज न कर मुझे छूने की, मेरा मन महकता गुलाब है
आज इतना ही....
........पता नहीं क्यूँ
........पता नहीं क्यूँ
आज चाणक्य के बारे में पढ़ना चाती हूँ
क्या था उस जीव में
उसे देखना और....
क्या था उस जीव में
उसे देखना और....