नमस्ते...
गोपालदास "नीरज जी की चंद पंखतियों के साथ पेश है आज की हलचल...
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए।
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए
गोवर्धन यादव का गणेश चतुर्थी पर विशेष आलेख - वक्रतुंडम महाकाय
Ravishankar Shrivastava जी की प्रस्तुति...
रचनाकार! पर...
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प्रेम
Misra Raahul जी की प्रस्तुति...
खामोशियाँ...!!! पर...
सच्ची सकारात्मक सोच
Tushar Raj Rastogi जी की प्रस्तुति...
तमाशा-ए-जिंदगी! पर...
कुछ हो वहाँ?
प्रवीण पाण्डेय जी की प्रस्तुति...
न दैन्यं न पलायनम्! पर...
नव स्वप्न
Asha Saxena जी की प्रस्तुति...
Akanksha! पर...
...और न रिटायर नेताओं के आरामगाह हैं राजभवन
pramod joshi जी की प्रस्तुति...
जिज्ञासा! पर...
सर्कस एक जिन्दगी (रोला छंद पर आधारित )
Rajesh Kumari जी की प्रस्तुति...
HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR! पर...
ग़ज़ल
Pramod Sharma Asar जी की प्रस्तुति...
सादर ब्लॉगस्ते! पर...
प्रेमचंद की परम्परा के बाल कहानीकार यादराम रसेन्द्र का निधन
DrZakir Ali Rajnish जी की रचना...
मेरी दुनिया मेरे सपने ! पर...
हाइकु - मुक्तक
vibha rani Shrivastava जी की प्रस्तुति...
"सोच का सृजन " ! पर...
बिल्ली जब जाती है दिल्ली चूहा बना दिया जाता सरदार है
सुशील कुमार जोशी जी की प्रस्तुति...
उलूक टाइम्स! पर...
पीछे मुडकर देखना जिंदगी को -- आशा जोगळेकर :)
संजय भास्कर जी की प्रस्तुति...
कविता मंच! पर...
धन्यवाद...
गोपालदास "नीरज जी की चंद पंखतियों के साथ पेश है आज की हलचल...
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जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए।
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए
गोवर्धन यादव का गणेश चतुर्थी पर विशेष आलेख - वक्रतुंडम महाकाय
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धन्यवाद...