यशोदा के नमस्कार स्वीकार करें
मुझे तनिक भी देर होती
तो आज फिर आपको
सूचना पढ़नी पड़ती...
और बगैर देर किये चलें हलचल की ओर....
प्रेम नगर की इस बस्ती में
राह खड़े दीवाने देखे.
रपट कहां कोई लिखवाएं
गुण्डो के घर थाने देखे
मन्नत मांगे बौद्ध दिल, रख जन्नत से दूर |
देख रहा ईराक में, दिखी तड़पती हूर |
जब कोई ख़्वाब निगाहों में संवर आता है
ख़ुश्क होठों पे तेरा नक़्श उभर आता है
चांद गुस्ताख़ परिंदे की तरह उड़ता है
और हर रात मेरी छत पे उतर आता है
अर्पण करते स्व-जीवन शिक्षा की अलख जगाने में ,
रत रहते प्रतिपल-प्रतिदिन शिक्षा की राह बनाने में .
आओ मिलकर करें स्मरण नमन करें इनको मिलकर ,
जिनका जीवन हुआ सहायक हमको सफल बनाने में .
जब मैं कविता लिखने लगी
अँधेरा मेरे लिए रहस्य नहीं रह गया।
अकसर रात में ही लिखती।
रात अपने कई रूपों का दर्शन कराती।
कितना कुछ मैंने जाना अपने बारे में उसी संगत में!
अँधेरा मेरी कविता का मुख्य रंग जैसे बनता गया।
हम एक दूसरे के लिए पारदर्शी होते गये...
"और सर ये रामकुमार और कुसुम ....?"
"अरे इन्हें छोड़ो "--प्राचार्य ने अपने खास सलाहकार नलिन की बात को गीले कपड़े की तरह झटक दिया ।
"ये संस्था के किसी काम के नही । बस रजिस्टर लेकर कक्षा में जाने और पढ़ाने के अलावा कोई काम नही करते । संस्था ऐसे लोगों के भरोसे नही चलती । हाँ तुम अपना नाम भी लिख लेना ..।"
दो एक बच्चे
मोहल्ले के
सुबह सुबह
शुभकामनाऐं
किसी रोज जब
दे के जाते हैं
याद आता है
एक दिन के
लिये ही सही
और मास्साब की
कमीज के कॉलर
खड़े हो जाते है
इज़ाजत दीजिये यशोदा को
फिर मिलते हैं......
औ
मुझे तनिक भी देर होती
तो आज फिर आपको
सूचना पढ़नी पड़ती...
और बगैर देर किये चलें हलचल की ओर....
प्रेम नगर की इस बस्ती में
राह खड़े दीवाने देखे.
रपट कहां कोई लिखवाएं
गुण्डो के घर थाने देखे
मन्नत मांगे बौद्ध दिल, रख जन्नत से दूर |
देख रहा ईराक में, दिखी तड़पती हूर |
जब कोई ख़्वाब निगाहों में संवर आता है
ख़ुश्क होठों पे तेरा नक़्श उभर आता है
चांद गुस्ताख़ परिंदे की तरह उड़ता है
और हर रात मेरी छत पे उतर आता है
अर्पण करते स्व-जीवन शिक्षा की अलख जगाने में ,
रत रहते प्रतिपल-प्रतिदिन शिक्षा की राह बनाने में .
आओ मिलकर करें स्मरण नमन करें इनको मिलकर ,
जिनका जीवन हुआ सहायक हमको सफल बनाने में .
जब मैं कविता लिखने लगी
अँधेरा मेरे लिए रहस्य नहीं रह गया।
अकसर रात में ही लिखती।
रात अपने कई रूपों का दर्शन कराती।
कितना कुछ मैंने जाना अपने बारे में उसी संगत में!
अँधेरा मेरी कविता का मुख्य रंग जैसे बनता गया।
हम एक दूसरे के लिए पारदर्शी होते गये...
"और सर ये रामकुमार और कुसुम ....?"
"अरे इन्हें छोड़ो "--प्राचार्य ने अपने खास सलाहकार नलिन की बात को गीले कपड़े की तरह झटक दिया ।
"ये संस्था के किसी काम के नही । बस रजिस्टर लेकर कक्षा में जाने और पढ़ाने के अलावा कोई काम नही करते । संस्था ऐसे लोगों के भरोसे नही चलती । हाँ तुम अपना नाम भी लिख लेना ..।"
दो एक बच्चे
मोहल्ले के
सुबह सुबह
शुभकामनाऐं
किसी रोज जब
दे के जाते हैं
याद आता है
एक दिन के
लिये ही सही
और मास्साब की
कमीज के कॉलर
खड़े हो जाते है
इज़ाजत दीजिये यशोदा को
फिर मिलते हैं......
औ