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Channel: भूले बिसरे-नये पुराने
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लेकिन देवियाँ बोलती कहाँ है-सौमवारीय हलचल।

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नमस्ते...
आप सबको शारदीय नवरात्रों  ,दुर्गापूजा एवं दशहरा की अग्रिम शुभकामनाएं...
हमारे देश भारत में हमेशा नारी पूजनीय रही हैं.... सति प्रथा, दहेज प्रथा पर्दा प्रथा  और भ्रूण हत्या जैसी बुराइयां हमारी संस्कृति में नहीं थी... ये सारी बुराइयां विदेशियों के आक्रमणों  के बाद उपजी है।...
हमारे वेदनारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान करते हैं| वेदों में स्त्रियों की शिक्षा- दीक्षा, शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका
का जो सुन्दर वर्णन पाया जाता है, वैसा संसार के अन्य किसी धर्मग्रंथ में नहीं है| वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं और देश की शासक, पृथ्वी की सम्राज्ञी
तक बनने का अधिकार देते हैं|
वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय| वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली, सुख – समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली, देवी, विदुषी, सरस्वती,
इन्द्राणी, उषा- जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं|
वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है – उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है| वैदिक काल
में नारी अध्यन- अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी| जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी| कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद
पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं|

अब चलते हैं आज की हलचल की ओर...
 लेकिन देवियाँ बोलती कहाँ है
***Upasna Siag
***
    वाह रे मानव ! धन का लालची कोई  मुझे मूर्त रूप में बेच जाता है तो  कोई मेरे मूर्त रूप पर चढ़ावा चढ़ा जाता है।मेरे असली स्वरूप की मिट्टी को मिट्टी में
दबाता  मेरे शांत रूप को निहारता।
  मैं चुप प्रतिमा बनी अब हारने लगी हूँ। लेकिन देवियाँ बोलती कहाँ है ! मिट्टी की हो या हाड़ -मांस की चुप ही रहा करती है
 
तू है
***Anusha Mishra***
मेरा मकसद तू, मेरा जहां तू, मेरा मुस्तकबिल तू है
जिस राह से भी मैं गुजरूं उसकी मंजिल तू है
सालों से की हुई मोहब्बत का अंजाम तू है

ओम प्रकाश शर्मा का आलेख -- आस्था बनाम तर्क
***Ravishankar Shrivastava
8****
     अन्य राज्यों की बात न करते हुए यदि हिमाचल प्रदेश की ही बात करें तो यहाँ मन्दिरों के नाम बहुत सी भूमि है। इसको बड़े बड़े वृक्ष अपनी छाया प्रदान करते
रहते है। लोग इन वृक्षों को किसी प्रकार की हानि पहुँचाने का साहस नहीं करते क्योंकि वे इसे देवता की सम्पत्ति मानते है और इस भूमि का तिनका या पत्ता तोड़ना
तक पाप समझते है। वर्तमान युग में जब इधर उधर पेड़ काटे जा रहे हैं वहाँ धार्मिक आस्था के कारण मन्दिरों के नाम की भूमि में सुन्दर, ऊँचे,घने वृक्षों के वन दिखाई
देते हैं।  जो आज भी प्रकृति को सुन्दर बनाने में अपनी भूमिका अदा कर रहे है। मध्य प्रदेश के खेजड़ी गाँव की कहानी सर्वविदित है जहाँ महिलाओं ने वृक्षों को बचाने
के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया था। यह सब हमारे  प्राचीन विचारकों की दूरदर्शिता का ही परिणाम है जिन्होने वृक्षों को लोगों की धार्मिक आस्था के साथ जोडा
था ।
      आज भी चर्चा होती है कि महिलाएँ  बाल्यकाल से ही कुपोषण का शिकार है। हमारे समाज में माताओं द्वारा भी पुत्र की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है बालिकाओं
की ओर नहीं यही कारण है कि सरकार को कई कानून पारित करने पड़े जिससे महिलाओं के स्तर में उन्नति हो सके। हमारे प्राचीन विद्वान इस बात को समझते थे। वह प्रत्यक्ष
रूप से लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाने में अक्षम थे। उन्होने परोक्ष रूप से नवरात्रों व अन्य शुभ अवसरों पर  कन्या पूजा के विधान को  अपने धर्म में जोड़
दिया ताकि समय-समय पर बालिकाओं को पौष्टिक भोजन तथा वस्त्र मिल जाएँ व ऐसे अवसरों पर प्राप्त दक्षिणा से वह अपनी पसंद की वस्तु क्रय कर सकें

शान्ति प्रतीक्षित
****प्रवीण पाण्डेय ****
शान्ति, मुक्ति सब श्वेत कथन से,
लगते चिन्तन में, जीवन में ।
किन्तु प्रयत्नों से पाना है,
कर प्रहार मन के शासन में

Ramayan and Sanatan(Hindu) Tradition In Muslim countries
***प्रवीण गुप्ता***
इंडोनेशिया की राजधानी का नाम राम की लंका विजय के उपलक्ष्य में जयकर्ता रखा गया था। जो धीरे - धीरे बिगड़कर जकार्ता
हो गया। वहां के राष्ट्रीय महाकाव्य रामायण और महाभारत हैं।
देश की सभी यूनिवर्सिटियों में स्टूडेंट्स के लिए इन दोनों महाग्रंथों को पढ़ना अनिवार्य है। इंडोनेशिया में कई द्वीपों का नाम रामायण के पात्रों पर है। यहां
पर लक्ष्मण की माता सुमित्रा के नाम पर सुमात्रा और सुग्रीव के नाम पर सुरब्य द्वीप व बाली द्वीप हैं

शब्द..
****Aparna Bose***
शब्द....
इक तूफ़ान को लिखने का ज़रिया,
बवंडर है, समन्दर है।
शब्द हैं तो तिलस्म है,
शब्द हैं तो हम हैं.......


कुछ तो भरम रहेगा
***vandana gupta***
दिन और रात के चरखे पर
कात रही हूँ खुद को
कायनात के एक छोर से दूसरे छोर तक
जानते हुए ये सत्य
भरम है तो टूटेगा भी जरूर…


शुम्भ निशुम्भ बध - भाग ५
   ***कालीपद "प्रसाद "***
देवी चण्डिका मीठी वाणी में
 कहाकाली देवी से
चंड मुंड घातिनी
तुम्हारी होगी ख्याति ...


कुछ सवाल..मेरे भी!
***parul chandra***
फिर क्या रोक रहा है तुमको
मेरा साथ पाने में..?
फिर क्या रोक रहा है तुमको
मेरा अस्तित्व स्वीकारने में..?

भीगे शब्द -- शिवनाथ कुमार
***संजय भास्कर***
पर आज महफ़िल जमाए बैठा हूँ
फिर से
भीगी रात में
उन्हीं भीगे शब्दों के साथ.... !!

धन्यवाद...

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