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आंसुओं की पोटली ले जा रही है..................इस माह अंतिम शनिवार

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हम स्वतंत्रता के भाव के बिना न कोई कार्य कर सकते हैं, 
और न ही जी सकते हैं। 

हवाओं का झूला और
घाम का संचय कर
शाम के बादलों से निमित्त रास्ते से
वो टहनियों में बांधकर
आंसुओं की पोटली ले जा रही है


"चीख लेने दो मुझे इस रात
फिर मर जाऊंगा
चरागों का धुंआ कुछ लिख गया
लाचार मौसम की सहम कर बह रही 




वो मिला था उन दिनों में मुझे जब वो चलते हुए ख्वाब जैसा था
उसकी आँखें भी गुनगुनाती थी वो एक जबाब जैसा था
उसके गेसुओं से छाँव होती थी वो मूरतें सबाब जैसा था
लोग करते थे गुफ्तगू उसकी उसका होना ख़िताब जैसा था
  

इतने बड़े जहान में
महफिलें सजी बहारों की
चहुओर चहलपहल रहती
उदासी कोसों दूर दिखती | 




यूँ ही बे-सबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो 




अपनों की याद में वक़्त बे वक्त बरसती आखें .............
अपनों को देखने वक़्त बे वक्त तरसती आखें .............
जो चले गये इस जहाँ से उनकी याद
दर्द बनकर हरदम भर आती आखें  .............




सुन लेते यदि धरती की पुकार ,
न होती ऐसी विषम गुहार ,
न गूँजता आर्तनाद ,
न होता भीषण संहार ,
जो बोया वही पाया ।


कब तक तुम उसे
इसी तरह छलते रहोगे !
कभी प्यार जता के,
कभी अधिकार जता के,




यह एक भ्रामक धारणा है कि
भड़ास या क्रोध को रिलिज करने से तनाव मुक्ति मिलती है।
उलट क्रोध तो तनाव के अन्तहीन चक्र को जन्म देता है।
क्योंकि भड़ास निकालने या आवेश व क्रोध को रिलिज करने से
प्रतिक्रियात्मक द्वेष ही पैदा होता है 




प्रारब्‍ध थे तुम
आना ही था एक दि‍न
जीवन में
सारी दुनि‍या से अलग होकर
मेरे हो जाना
और मुझको अपना लेना.....



 जलाकर राख कर गया, वो दिल का रिश्ता है.
बुझाकर आग कर गया, वो दिल का रिश्ता है.
हमें मालूम नहीं क्यों लोग रंजिश रखते हैं,
हंसाकर लाजवाब कर गया, वो दिल का रिश्ता है.


छाई कैसी अंधियारी ....!!
गगन मेघ काले देख ...
मछली सी तड़प उठी ...
कलप उठी पीर....
बिन अंसुअन नीर ....


नुसरत के कुछ दुर्लभ ब्लैक एंड व्हाईट फ़ोटोग्राफ़
नुसरत फ़तेह अली ख़ाँ साहेब के मुरीदों के लिए
उनके कुछ दुर्लभ ब्लैक एंड व्हाईट फ़ोटोग्राफ़ - 



"तुम सुषमा हो मनोहर"
दहक उठा हैं तुम्हारे वियोग मे
मेरी तन्हाई का सूना जंगल
तुम्हे प्रत्यक्ष देखा भी हूँ या नहीं
स्मरण नहीं हैं



आज के लिये इतना ही
फिर मिलते हैं
सदा की तरह बुध को
यशोदा
सुनिये आज का गीत..


 


 


 


 


 


 



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