नमस्कार!
सप्ताह की पहली हलचल मे प्रस्तुत है चुनिन्दा लिंक्स---
क्योंकि मैं ठूठ नहीं जीना चाहती हूँ ....................
वो पेड़ जो फूल और हरे हरे पत्ते से घिरे होते हैं
अच्छे लगते हैं
उसी तरह मैं भी रिश्तों से घिरा रहना चाहती हूँ
क्योंकि मैं ठूठ नहीं जीना चाहती हूँ
घने पेड़ हो....
बस वक्त की कड़ी धूप...
और गरम हवाओं के थपेड़ों ने...
सुखा दिया तुम्हारी नमी को....
सप्ताह की पहली हलचल मे प्रस्तुत है चुनिन्दा लिंक्स---
क्योंकि मैं ठूठ नहीं जीना चाहती हूँ ....................
वो पेड़ जो फूल और हरे हरे पत्ते से घिरे होते हैं
अच्छे लगते हैं
उसी तरह मैं भी रिश्तों से घिरा रहना चाहती हूँ
क्योंकि मैं ठूठ नहीं जीना चाहती हूँ
ठूंठ सा तन
पपड़ाया यौवन
पंछी भी उड़े .
पपड़ाया यौवन
पंछी भी उड़े .
तुम ठूंठ नहीं हो....
तुम भी एक छायादार....घने पेड़ हो....
बस वक्त की कड़ी धूप...
और गरम हवाओं के थपेड़ों ने...
सुखा दिया तुम्हारी नमी को....
ठूंठ…
तुम किसी मोड़ पर तो मिलोगे
क्या कहोगे?
कुछ कह भी सकोगे?
भाषा विचारों को अभिव्यक्त्त न कर पाये तो भी
विचार नहीं मरते
भाव नहीं गलते।
(इस प्रस्तुति पर टिप्पणी का विकल्प बंद है। पाठकगण
यदि चाहें तो संबन्धित लिंक्स पर अपने विचार रख सकते हैं। )
तुम किसी मोड़ पर तो मिलोगे
क्या कहोगे?
कुछ कह भी सकोगे?
भाषा विचारों को अभिव्यक्त्त न कर पाये तो भी
विचार नहीं मरते
भाव नहीं गलते।
द्रौपदी के चीर जैसी -
लम्बी एक-एक होती है
सुर नहीं लय नहीं
यति नहीं गति नहीं
भाव नहीं बात नहीं
न जाने कौन सी कविता होती है
कभी मुझ पर भी
बहार आती थी
मुझ पर भी
नव - पल्लव खिलते थे
बहार आती थी
मुझ पर भी
नव - पल्लव खिलते थे
यशवन्त माथुर
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