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Channel: भूले बिसरे-नये पुराने
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आज कुछ खास नहीं...पहला बुधवार है....अषाढ़ मास चालू आहे..

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आज कुछ खास नहीं...पहला बुधवार है....अषाढ़ मास चालू आहे..



ओ कालीदास के मेघदूत
कहाँ हो तुम ?
क्या तुमने भी कलयुग में आकर
अपनी प्रथाएँ और
परम्परायें बदल ली हैं ? 


 आँख मिचौनी सूर्य की, देख बादलों संग
खेल रचाकर हो रही, कुदरत खुद ही दंग

शिखरों को छूने बढ़े, बादल बाँह पसार
स्वागत करने वादियाँ, कर आईं श्रृंगार




बुंदियन बुंदियन ...
बरसे बदरा सुभग नीर ...
मिटी मोरे मनवा की   पीर ...
आज सनेहु  आयहु मोरे द्वार ...
री सखी ....बरसन लागी बरखा बहार ....!!
 




चलो अच्छा हुआ बादल तो बरसा
जलाया था बहुत उस बेवफ़ा ने

ये मेरी सोचती आँखे कि जिनमे
गुज़रते ही नहीं गुज़रे ज़माने


 मैं तुझे मिल जाऊंगा, तू बस मैं को भूल
मेरी खातिर हैं बहुत , श्रद्धा  के   दो फूल. 

जीवन सारा  बीतता , करता रहा तलाश
अहंकार के भाव ने, सब कुछ किया विनाश. 




निरर्थक वार्तालाप
फासले बढाता हैं
सदियां लग जाती हैं
जिनको दूर करने में
सो क्या फर्क पड़ता हैं



 रिमझिम बारिश और
उसकी बूंदों का संगीत,
कभी सुना है तुमने,
ध्‍यान से,
आज मैं कह रहा हूं,




अकेले में,
सुकून से,
आँखों के खाली होने का,
दिल के हलके होने का,
रोने का भी
अपना अलग मजा है … 






कुछ उसकी अना थी,कुछ उसका  गरूर था
यूँ   हीं   ख़त्म   नहीं   हो   गये   सिलसिले

ज़िन्दगी  बहुत  उदास   -उदास   लगती है
गर  ज़िन्दगी  में न  हों थोड़े शिकवे -गिले





बारिश का एक दिन
"चलो चंदू की दूकान पर..
मुझे पकौड़े और पुदीने की चटनी खानी है"..
उसने आते ही कहा.




फूलों की
घाटी में मौसम की
हथेलियाँ रंगीं खून से |
ओ सैलानी !
अब मत जाना
प्रकृति रौदने इस जूनून से |




एक नई पाठशाला खुली है हमारे  ही लिये
आइये छोड़े कुछ नया....और सीखें कुछ पुराना
चार चरण दो पंक्तियाँ, लगता ललित-ललाम।
इसीलिए इस छन्द ने, पाया दोहा नाम।१।




मेरी माँ...
अभी तो उसके ही तन का हिस्सा हूँ मैं
ख्वाबों में मुझसे मिल रही है मेरी माँ
 



आज बस
मिलते हैं शनि को
नये-पुराने लिंक्स के साथ
यशोदा




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