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बुधवारीय अंक.....खासियत है आज....

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खासियत है आज....
विवाहादि के दिन अब लदने वाले हैं
कुछ दिनों के बाद देव सो जाएँगे....


आज रथ यात्रा जो है


जिस पथ से रथ निकलेगा,
धरती पावन हो जायेगी।
अवतारी प्रभु की नगरी,
भी मनभावन हो जायेगी।
रथ की महिमा बहुत महान।
जय-जय जगन्नाथ भगवान।।



सत्य की खोज में
दर बदर  भटकते हुये
मिली सूर्य रश्मि से
पूछा क्या तुम सत्य हो

 



 बहुत दिन हो गए
हमें अपनापन का नकाब पहन कर
दुनिया से अपना सच छुपाते हुए....!
इस नकाब के पीछे है


सामने  आते  भी  नहीं  चिलमन  को हटाते भी नहीं
हिज्र में मरते भी  नहीं   हँस -हँस के रुलाते भी नहीं
अजीब    पर्दा   है   कि  सब  कुछ  दिखाई   देता   है
मासूम कातिल की तरह छुप-छुप के सताते भी नहीं


प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥
कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार।
अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥


ख़ुदा ने आज़माया है ,अज़ाब हम पर आया है .
किया अजहद ज़ुल्म हमने ,अदम ने ये बताया है .
कस्साबी नारी सहे ,मुहं सी आदमजाद  की .
इन्तहां ज़ुल्मों की उसपर ,उफान माँ का लाया है



तुम भी तो होगे किसी की आँखों के तारे
होगे अरमान किसी का
बनोगे ज़िंदगी के सहारे
आज दिल करा
चूम लूँ तुम्हारा माथा




उनकी आँखों में पढ़ा, स्नेह-सिक्त सन्देश
आश्वासन पाकर मिटे, मन के  सारे क्लेश
मधुमय जीवन का यही; सत्य, सार-संक्षेप
आती है मधुमास में, नव-सुगन्ध की खेप


गए वो दिन जब कश्मीर
हुआ करता था स्वर्ग जमीन का
होते थे हरसूं प्यार के मंजर
अब तो कश्मीर को
कश्मीर कहने में भी
डर लगता है ......




मन के छुपे कोने से न जाने कब
आज फिर निकल आया बहुत याद आया
वो बिखरे बालों वाला कुछ उलझे ख्यालों वाला
खुद में गुम सा रहता कभी दूर छितिज को तकता




आँगन में बिखरे रहे, चूड़ी कंचे गीत
आँगन की सोगात ये, सब आँगन के मीत
आँगन आँगन तितलियाँ, उड़ती उड़ती जायँ
इक आँगन का हाल ले, दूजे से कह आयँ


'जहां न पहुंचे रवि
वहाँ पहुंचे कवि '
जो कह न सके कभी
वही कह देता अभी


ख्यालों में आ गया है अभी
दिल में तूफ़ान सा उठा है अभी
हम सितारा समझ रहे थे उसे
चाँद था वो, पता चला है अभी



जान नई भरते हैं......(नया ब्लाग)
मौसम की अंगड़ाई कुछ कहती है
फिज़ाओं में तरन्नुम भरती है
भूल कर अपनी खताओं को
एक - दूजे की हाथ थामते हैं  ।




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रात घिर आई है
अधगीली सड़क पर
आवाजाही कम है ज़रा
सोडियम लैम्प की पीली रौशनी में

प्रकाशन के बाद....

मुश्किल भरे रास्‍तों से गुज़र कर
दिल और दिमाग के कुछ हिस्‍सों में
गज़ब की ताकत आ जाती है
जंग लगे ख्‍याल भी
बड़ी ही फुर्ती से
अपना नुकीला पन दर्शा देते हैं
चोट खाया हिस्‍सा
जख्‍मों के निशान पर
एक पपड़ी मोटी सी धैर्य की डाल
बेपरवाह हो जाता है !!

 



  

आज बस......
फिर मिलते हैं शनिवार को
नये-पुराने लिंक्स के साथ
यशोदा के नमन

 
इस अंक में इनकी रचनाएँ हैं -
पण्डित रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक', संगीता स्वरूप, पूनम, अज़ीज़ जौनपुरी,  
बृजेश नीरज, शालिनी कौशिक, इन्दु रवि सिंह, शेषधर तिवारी,  
मंजू मिश्रा,  दिव्या शुक्ला, दिगम्बर नासवा,  यशवन्त माथुर,  
नीलिमा शर्मा,  कविता विकास, नवीन प्रकाश, सुमन, सदा

 





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