नमस्कार!
गुरुवारीय हलचल में आपका स्वागत है इन लिंक्स के साथ-
गुरुवारीय हलचल में आपका स्वागत है इन लिंक्स के साथ-
आज की विश्व की राजनीति में घट रही इन घटनाओं को एकांगी रूप में देखना बड़ी भूल होगी। जगतीकरण के इस दौर में पूरा जगत तो एक नहीं हुआ, पर साम्राज्यवादी ताकतों का गठजोड़ अंतर्राष्ट्रीय अवश्य हो गया. जर्मनी के हिटलर और इजरायल की सुखद चर्चा संघ की शाखा पर अक्सर ही होती है. संघ भारत में इजरायली आतंक का भारतीय संस्करण है. मालेगांव का बम विस्फोट बहुत चीजों का साफ करता है.
सांप्रदायिकता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आतंकवाद
आर.एस.एस का प्रशिक्षण दुतरफा होता है। एक है शारीरिक, खेल वगैरह। दूसरा है बौद्धिक। यह जो दूसरा प्रशिक्षण है वह अपनी संतानों को प्रेरित करता है कि वे लोगों को हथियार उठाने को भड़काएं और ‘दूसरों’ यानी ‘दुश्मन’ को बेदर्दी से कत्ल करें। किसी भी हिंसा या दंगे की चीरफाड़ बहुत ही दिलचस्प और जटिल होती है। कैसे एक आम दलित, आदिवासी, खाली पेट और अनिश्चित भविष्य वाला मजदूर आर.एस.एस के एजेंडे के सिपाही के रूप में परिवर्तित हो जाता है, यह ऐसा पेच है जिसे समाज-विज्ञानियों को समझना होगा।
डॉ अम्बेडकर ने कहा था " बाबू जगजीवन राम भारत के चोटी के विचारक,भविष्यद्रष्टा और ऋषि राजनेता हैं ".
आम तौर पर माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री पद पर उनको ही बैठाया जाएगा लेकिन जयप्रकाश नारायण के साथ कई दौर की बैठकों के बाद यह तय हो गया कि जगजीवन राम को जनता पार्टी ने किनारे कर दिया है, जो सीट उन्हें मिलनी चाहिए थी वह यथास्थितिवादी राजनेता मोरारजी देसाई को दी गयी . इसे उस वक़्त के प्रगतिशील वर्गों ने धोखा माना था .
कैसे करेंगे अनुच्छेद 370 को रद्द ज़रा ये भी बता दें शाहनवाज़ हुसैन .
अनु .370 [3] के अनुसार -
-इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी ,राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कि यह अनुच्छेद प्रवर्तन में नहीं रहेगा या ऐसे अपवादों और उपानतरनो सहित ही और ऐसी तारीख से ,जो विनिर्दिष्ट करें ,प्रवर्तन में रहेगा .
परन्तु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना जारी किये जाने से पहले खंड[२] में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी
अर्चना वर्मा के कथादेश में छपे लेख पर वीरेन्द्र यादव का प्रतिवाद
दरअसल कमलेश की मुख्य चिंता कम्युनिज्म द्वारा फैलाये गए 'अज्ञान के घोर अँधेरे ' से मुक्ति और अभी भी भारत में कम्युनिस्टों के वजूद के बने रहने से है . अर्चना वर्मा के 'विकल्प वामपंथ ही है’ की सदेच्छा और कमलेश की कम्युनिज्म द्वारा फैलाये गए 'अज्ञान के घोर अँधेरे’ व कम्युनिस्टों से मुक्ति पाने की मुहीम के बीच नट-संतुलन के निहितार्थों को पढ़ा जाना चाहिए . क्या ही अच्छा होता यदि अर्चना जी ने 'समास -६' में प्रकाशित कमलेश के उन विचारों को भी पढ़ लिया होता जिनमें उन्होंने नात्सीवाद के समर्थक जर्मन दार्शनिक हाइडेगर का यह कहकर बचाव किया है कि भले ही वे नात्सी पार्टी के सदस्य रहे हों लेकिन "वैचारिक स्तर पर उनका चिंतन नात्सी विचारधारा से अलग ही नहीं था ,
तुमि तो ठेहेरे परदेसी , साथि क्या निभावोगे…
बात तब की है जब हम कॉलेज में नए-नए शिफ्ट हुए थे, और बात-बेबात मौका निकाल कर घर जाया करते थे | महल्लेमें उस समय प्यार का रोग भर भर के चढा था, हर कोई इश्क में बावरा हुआ पड़ा था | हमारे एक बचपन के दोस्त थे जो पांचवी क्लास तक हमारे साथ पढ़े थे और हमारे घर से ३ गली छोड़ कर रहते थे , नमन
तू ही बता ज़िन्दगी
घड़ी की रफ़्तार से चलती ज़िन्दगी
कभी -कभी उससे भी आगे निकलती हुई
कोई तो बता दे यह भाग - दौड़
आखिर किसके लिए है ?
जब इसे भोगने का हमारे पास वक़्त नहीं ।
कितने बेबस हैं हम ,जिस ख़ुशी के लिए
दिन - रात एक करते हैं
उसे गुनगुनाने के लिए तरसते हैं ।
कश्मीर की वादियाँ -रजनी मोरवाल,कवितायें
सांप्रदायिकता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आतंकवाद
आर.एस.एस का प्रशिक्षण दुतरफा होता है। एक है शारीरिक, खेल वगैरह। दूसरा है बौद्धिक। यह जो दूसरा प्रशिक्षण है वह अपनी संतानों को प्रेरित करता है कि वे लोगों को हथियार उठाने को भड़काएं और ‘दूसरों’ यानी ‘दुश्मन’ को बेदर्दी से कत्ल करें। किसी भी हिंसा या दंगे की चीरफाड़ बहुत ही दिलचस्प और जटिल होती है। कैसे एक आम दलित, आदिवासी, खाली पेट और अनिश्चित भविष्य वाला मजदूर आर.एस.एस के एजेंडे के सिपाही के रूप में परिवर्तित हो जाता है, यह ऐसा पेच है जिसे समाज-विज्ञानियों को समझना होगा।
डॉ अम्बेडकर ने कहा था " बाबू जगजीवन राम भारत के चोटी के विचारक,भविष्यद्रष्टा और ऋषि राजनेता हैं ".
आम तौर पर माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री पद पर उनको ही बैठाया जाएगा लेकिन जयप्रकाश नारायण के साथ कई दौर की बैठकों के बाद यह तय हो गया कि जगजीवन राम को जनता पार्टी ने किनारे कर दिया है, जो सीट उन्हें मिलनी चाहिए थी वह यथास्थितिवादी राजनेता मोरारजी देसाई को दी गयी . इसे उस वक़्त के प्रगतिशील वर्गों ने धोखा माना था .
कैसे करेंगे अनुच्छेद 370 को रद्द ज़रा ये भी बता दें शाहनवाज़ हुसैन .
अनु .370 [3] के अनुसार -
-इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी ,राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कि यह अनुच्छेद प्रवर्तन में नहीं रहेगा या ऐसे अपवादों और उपानतरनो सहित ही और ऐसी तारीख से ,जो विनिर्दिष्ट करें ,प्रवर्तन में रहेगा .
परन्तु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना जारी किये जाने से पहले खंड[२] में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी
अर्चना वर्मा के कथादेश में छपे लेख पर वीरेन्द्र यादव का प्रतिवाद
दरअसल कमलेश की मुख्य चिंता कम्युनिज्म द्वारा फैलाये गए 'अज्ञान के घोर अँधेरे ' से मुक्ति और अभी भी भारत में कम्युनिस्टों के वजूद के बने रहने से है . अर्चना वर्मा के 'विकल्प वामपंथ ही है’ की सदेच्छा और कमलेश की कम्युनिज्म द्वारा फैलाये गए 'अज्ञान के घोर अँधेरे’ व कम्युनिस्टों से मुक्ति पाने की मुहीम के बीच नट-संतुलन के निहितार्थों को पढ़ा जाना चाहिए . क्या ही अच्छा होता यदि अर्चना जी ने 'समास -६' में प्रकाशित कमलेश के उन विचारों को भी पढ़ लिया होता जिनमें उन्होंने नात्सीवाद के समर्थक जर्मन दार्शनिक हाइडेगर का यह कहकर बचाव किया है कि भले ही वे नात्सी पार्टी के सदस्य रहे हों लेकिन "वैचारिक स्तर पर उनका चिंतन नात्सी विचारधारा से अलग ही नहीं था ,
तुमि तो ठेहेरे परदेसी , साथि क्या निभावोगे…
बात तब की है जब हम कॉलेज में नए-नए शिफ्ट हुए थे, और बात-बेबात मौका निकाल कर घर जाया करते थे | महल्लेमें उस समय प्यार का रोग भर भर के चढा था, हर कोई इश्क में बावरा हुआ पड़ा था | हमारे एक बचपन के दोस्त थे जो पांचवी क्लास तक हमारे साथ पढ़े थे और हमारे घर से ३ गली छोड़ कर रहते थे , नमन
तू ही बता ज़िन्दगी
घड़ी की रफ़्तार से चलती ज़िन्दगी
कभी -कभी उससे भी आगे निकलती हुई
कोई तो बता दे यह भाग - दौड़
आखिर किसके लिए है ?
जब इसे भोगने का हमारे पास वक़्त नहीं ।
कितने बेबस हैं हम ,जिस ख़ुशी के लिए
दिन - रात एक करते हैं
उसे गुनगुनाने के लिए तरसते हैं ।
कश्मीर की वादियाँ -रजनी मोरवाल,कवितायें
ऋतुओं के आँचल में फूलों के तार
कलियों ने बाँधी हैं झूम के कतार|
कश्मीरी वादी में
काँपती तरंग,
घाटी भी देख रही
केशर का रंग|
अब पुनःरुक्त नहीं होना है
साँझ-सवेरे भी बदलेंगे
बीज अलख का इक बोना है,
सतत् प्रयाण रहे चलता
अब पुनःरुक्त नहीं होना है !
~प्रस्तुतकर्ता-यशवन्त माथुर
(इस प्रस्तुति पर टिप्पणी का विकल्प बंद है। पाठकगण चाहें तो लिंक्स पर ही अपने विचार रख सकते हैं। )
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