नमस्कार!
हलचल के सभी पाठकों को स्वतन्त्रता दिवसकी हार्दिक शुभ कामनाएँ!
हलचल के सभी पाठकों को स्वतन्त्रता दिवसकी हार्दिक शुभ कामनाएँ!
दासता की रात में जो खो गये थे,
भूल अपना पंथ, अपने को गये थे,
भूल अपना पंथ, अपने को गये थे,
वे लगे पहचानने निज वेश फिर से!
आज से आजाद अपना देश फिर से!
जो अगणित लघु दीप हमारे तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
तुम्हारा सिर झुका हुआ मानो आधा कटा हो
गर्दन से,
लुंज-पुंज लटकती हैं बाँहें,
यहाँ-वहाँ भटकते हो तुम
अपनी महान स्वतंत्रता में:
बेरोज़गार रहने की आज़ादी के साथ
तुम स्वतंत्र हो।
गर्दन से,
लुंज-पुंज लटकती हैं बाँहें,
यहाँ-वहाँ भटकते हो तुम
अपनी महान स्वतंत्रता में:
बेरोज़गार रहने की आज़ादी के साथ
तुम स्वतंत्र हो।
कैसे अंग्रेज़ी हुकूमत से निजात मिली सभी को पता है
और जिन नौनिहालों को नहीं पता
उन्हें हर साल बताया जाता है ये सब !
सारी देश भक्ति सारे कर्तव्य बस यहीं तक तो सीमित रह गए हैं।
स्वंत्रतता दिवस हो या गणतंत्र दिवस
और जिन नौनिहालों को नहीं पता
उन्हें हर साल बताया जाता है ये सब !
सारी देश भक्ति सारे कर्तव्य बस यहीं तक तो सीमित रह गए हैं।
स्वंत्रतता दिवस हो या गणतंत्र दिवस
देश के आज़ाद होने के बाद भी हम यहाँ कि प्रशासनिक प्रणाली और शिक्षा प्रणाली में उनके बनाये हुए नियमों को ही मानते आ रहे हैं. इस आज़ाद भारत कि हर चीज़ में आपको उस अंग्रेजीपन कि झलक दिखाई देगी. यहाँ के लोग, उनकी सोच, उनका रहन सहन सभी उस अंग्रेजीपन के गुलाम हैं. हमें क्यों विदेशी चीजों से इतना लगाव है ? हम विदेशी चीजों से इतने आकर्षित क्यों होते हैं. क्यों हमें हर विदेशी चीज़ कि कामना रहती है
इस क्रांतिकारी घटना मे भाग लेने वाले स्वातंत्र्य योद्धाओं मे राम प्रसाद 'बिस्मिल',अशफाक़ उल्ला खान ,रोशन सिंह तथा राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी को 17 एवं 19 दिसंबर 1927 को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी। बिस्मिल उस समय शाहजहाँपुर के मिशन स्कूल मे नौवी कक्षा के छात्र थे। वह पढ़ाई कम और आंदोलनों मे अधिक भाग लेते थे। गोरा ईसाई हेड मास्टर भी उनका बचाव करता था। एक बार जब वह कक्षा मे थे तो ब्रिटिश पुलिस उन्हें पकड़ने पहुँच गई। उस हेड मास्टर ने पुलिस को उलझा कर कक्षा अध्यापक से राम प्रसाद''बिस्मिल' को रेजिस्टर मे गैर-हाजिर करवाया और भागने का संदेश दिया। बिस्मिल दूसरी मंजिल से खिड़की के सहारे कूद कर भाग गए और पुलिस चेकिंग करके बैरंग लौट गई।
हमारे पास प्रिन्ट पुस्तकों व एनालाग मीडिया के सम्बन्ध में पुरानी स्वतन्त्रता हैं। लेकिन अगर ई – किताबों ने प्रिन्ट किताबों का स्थान ले लिया तो हम ये स्वतन्त्रताएं खो देंगे। कल्पना कीजिये : पुरानी किताबों की दुकानें नहीं रहेंगी, आप अपने मित्र को पढ़ने के लिये किताब नहीं दे पाएगे, आप पब्लिक लायब्रेरी से पूस्तकें उधार नहीं ले पाएगे – एसे किसी भी ’रिसाव’ की संभावना नहीं रहेगी जिसके जरिये कोई भी पैसे दिये बिना किताबें पढ़ सकेगा/गी। नाम बतलाये बिना नकद में पुस्तकें खरीदना संभव नहीं होगा क्योंकि ई पुस्तकों को क्रेडिट कार्ड पर ही खरीदा जा सकता है।
~यशवन्त माथुर