आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी है
आज भगवान श्री कृष्ण जनम लेंगे
काश...सच में जन्म ले लेते भगवान आज
काश...सच में जन्म ले लेते भगवान आज
भारत कंसों से मुक्ति तो पा जाता
चलते हैं सीधे लिंक्स की ओर..
हम तेरे द्वारे कब से खड़े है,
विनती सुन लो हे मुरली वाले..
कंकनि करधन धारि, मूर्धन धर मोर पाख
बृंदा बन रास बिहारि, मोहित कर चितबन हरे ।।
तुम क्यों रूठे हो गोपाल
मेरी विनती सुनो नन्दलाल
सूझ ! सलोनी, शारद-छौनी,
यों न छका, धीरे-धीरे !
फिसल न जाऊँ, छू भर पाऊँ,
री, न थका, धीरे-धीरे !
'औरत'
जन्म लेती है
'औ' विखेरती हैं
खुशियाँ
मेरा 'मैं' ...
रिक्तता,पूर्णता के मध्य
अपने 'मैं' को बैसाखी बना
तुम न होते तो शायद.....
शब्दों के समूह पंक्तिबद्ध न होते
अपने अपने वजूद की तलाश में
इस ज़िन्दगी के दो जुदा किनारे ढूंढ़ लें
अगर अपना समझते हो तो फिर नखरे दिखाओ मत
ये कलियुग है, इसे द्वापर समझ कर भाव खाओ मत
उदासी यूँ घेर लेती है
कि राह नहीं देती-
किसी ख़ुशी के लिए...
खुली बरसात में
तुमसे मिलें तो
क्या मज़ा आये
बंद ताले की दो चाबियाँ
और वो जंग लगा ताला
आज भी बरसों की भाँति
उसी गेट पर लटका है
आज के लिये बस
सुनिये ये भजन
विदा कीजिये यशोदा को
कान्हा के लिये भोजन तैय्यार करना है न...
..............................हम तेरे द्वारे कब से खड़े है,
विनती सुन लो हे मुरली वाले..
कंकनि करधन धारि, मूर्धन धर मोर पाख
बृंदा बन रास बिहारि, मोहित कर चितबन हरे ।।
तुम क्यों रूठे हो गोपाल
मेरी विनती सुनो नन्दलाल
सूझ ! सलोनी, शारद-छौनी,
यों न छका, धीरे-धीरे !
फिसल न जाऊँ, छू भर पाऊँ,
री, न थका, धीरे-धीरे !
'औरत'
जन्म लेती है
'औ' विखेरती हैं
खुशियाँ
मेरा 'मैं' ...
रिक्तता,पूर्णता के मध्य
अपने 'मैं' को बैसाखी बना
तुम न होते तो शायद.....
शब्दों के समूह पंक्तिबद्ध न होते
अपने अपने वजूद की तलाश में
इस ज़िन्दगी के दो जुदा किनारे ढूंढ़ लें
अगर अपना समझते हो तो फिर नखरे दिखाओ मत
ये कलियुग है, इसे द्वापर समझ कर भाव खाओ मत
उदासी यूँ घेर लेती है
कि राह नहीं देती-
किसी ख़ुशी के लिए...
खुली बरसात में
तुमसे मिलें तो
क्या मज़ा आये
बंद ताले की दो चाबियाँ
और वो जंग लगा ताला
आज भी बरसों की भाँति
उसी गेट पर लटका है
आज के लिये बस
सुनिये ये भजन
विदा कीजिये यशोदा को
कान्हा के लिये भोजन तैय्यार करना है न...