शुभप्रभात

जिन्दगी के कैनवास पर
मेरी लेखनी चलनी चाहिये ,
ऐसे रचनाओं पर ?


इतिहास का ज़ख़्म

एक नन्हा घोंघा

मिलन

क्रांति पुष्प
क्रान्ति पुष्प के त्योहार

2 -
शहर है ये नपुंसकों का
3 -
स्त्रियाँ गा रही होंगी गीत
कल हरे-भरे पेड़ उजड़ेंगे
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जब कभी
बूढी उदास औरतें
हो पाता ऐसा
देखता है सपना
गहरी जडें लिए
तितलियां हैं यादें
घटने लगी है कहानी
अभी हाल में
वसंत का सूरज

आँखों की टहनियों पर
प्यार के मोती-दाने
सन्नाटे की सीलन से
उठने लगती है धीमी आंच
स्पर्श के चन्दन से

मुझे इश्क का मतलब
नज़र आता हैं मुझे हर तरफ
मेरी सांसों में घुली हुई हैं
तुम्हारे चन्दन से बदन की महक
मेरी तकदीर गयी हैं बदल
मुझे दीजिये इजाजत ……. फिर मिलेंगे ......
विभा रानी श्रीवास्तव