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Channel: भूले बिसरे-नये पुराने
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क़िस्मत में जो लिखा है वो मिलकर रहेगा..आज की शनिवारीय अंक....

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वरना हलचल से अनुपस्थिति
मेरी फितरत मे नहीं....
दुआ करें..
व्यवस्थित रहूँ मैं..
चलिये चलते हैं ब्लाग बागीचे में आज क्या है...



महिला का दर्जा जीवन में पहला है
आप हमेशा नहला है वो हमेशा दहला है
उसे देवी समझ कर पूजो,
घर का माहोल बदल जाएगा
छोटा सा घर भी महल बन  जाएगा

 
चोट जब संजीवनी होने लगी
जिंदगी बहती नदी होने लगी
त्याग कर फिर धारती नवपत्र है
फाग सुरभित मंजरी होने लगी


रखा सूटकेस उसके चरणों में तत्काल
निकला चूड़ी का डिब्बा और पहना चूडा ,
सजा ली कलाई उसने, दी सिन्दूर की डिब्बी पति के हाथ,
हुकुम साथ भरने को गहरी मांग लगाने को कहा
बिंदिया माथे पर, ना था कोई शीशा उसके पास
पर्स से निकाले बिछिया,
और नेलपालिश सजाने को हाथ -पाँव
झट तैयार हो गयी वो नव व्याहता 


कुछ तो है.........
नैना खिलखिलाते हैं ,
अधर मिचमिचाते हैं ,
कपोल भिंचे जाते हैं ,
स्याह लटें डोलती हैं ,


ख़ुशामदी अवसरवादी
तोता चश्म यशलोभी
निकले आगे
और आगे और आगे
मैं धिकलता गया पीछे


यहाँ होता है तो
कानून उसकी
जेब में होता है
घर हो आफिस हो
बाजार हो लोक सभा हो
विधान सभा हो
कलाकारों का दरबार हो
ब्लागिंग हो ब्लागरों
का कारोबार हो
एक सा होता है 


पूनम    की   वो   रातें   थी
सच्ची  झूंठी  कुछ बातें थी
जब होली की रुत आती थी
तब भंग  पिलाई  जाती थी


समाअतों में बहुत दूर की सदा लेकर
भटक रहा हूँ मैं इक ख़ाब का पता लेकर
तुम्हारी याद बरस जाय तो थकन कम हो
कहाँ कहाँ मैं फिरूं सर पे ये घटा लेकर


उनसे होगी फिर मुलाक़ात सोचा न था
आँखों से होगी फिर बर्षात सोचा न था
वैसे उन्हें हमने न भुलाया था कभी
खुद आएंगी फिर दिलाने याद सोचा न था


बात दिल की कह दी जब अशआर में
ख़त किताबत क्यूँ करूँ बेकार में
मरने वाले तो बहुत मिल जाएंगे
सिर्फ़ हमने जी के देखा प्यार में


आज बस इतना ही
उच्चकोटि की रचनाएं
ज़रा कम ही पढ़ी जाती है
तो सुधिजन अब इज़ाज़त दें
यशोदा को
फिर मिलने के लिये
सादर


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