नमस्ते...
आज की नयी पुरानी हलचल में ुलदीप ठाकुरका अभिवादन स्विकारें... पेश है आज की हलचल इन चुने हुए लिंकों के साथ
जो सदा पुण्य में तत्पर रहते, नाव ऋषियों ने भेजी है
सुंदर आसन बिछा है इसमें, तीव्र गति से यह आई है
पहले पार कराया उनको, तब ऋषियों के संग मुनि ने
स्वयं उतरे फिर उत्तर तट पर, निकले पुरी की शोभा लखने
जो दिल की बात बताये ना,
दिल की लगी को भुलाये ना !
ऐसे शख्स से दिल लगाना ,
आत्मघात जैसा होता है !
भारत वर्ष में गुरूओं की महत्ता युगकालीन कही जा सकती है।रामायण से लेकर महाभारत और श्रीमद्भगवत्गीता से लेकर गुरू गीता तक में आचार्यों और गुरूओं की महिमा
का बखान किया गया है। गुरूकुल की शिक्षा व्यवस्था ने राजकुमारों को धन- संपन्नता के वैभव से दूर रखते हुए गुरूचरणों में वंदना करते हुए जीवन के सार को समझने
और महान व्यक्ति बनने में योगदान किया है। प्रतिवर्ष आषाढ़ शुल्क पूर्णिमा तिथि गुरू पूर्णिमा के रूप में मनायी जाती है। अपने गुरूओें के प्रति अगाध श्रद्धा
रखने वालों के लिए यह दिन मार्ग- दर्शन प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ अवसर माना जा सकता है। गुरू के जीवित न रहने पर उनकी शिक्षा को चेतन मन में लाते हुए आत्मसात
करना ही शिष्य का परम कर्तव्य होना चाहिए। शिक्षा और दीक्षा दोनों ही एक महान गुरू की तपस्या से निखरे मानवीय कल्याण के मुख्य आधार तत्व सिद्ध होते आ रहे है।
संसद के पंडो की बाजीगरी देखो
कमंडलो को गंदा बना रखा है...!!!
इंसाफ के तराजू पर भरोसा कहाँ
कानून को अंधा बना रखा है...!!!
बहुत रोया जब जन्म लिया
माँ की गोद में सोया
सब की बाहों में झूला
लगा खुशियों का मेला |
बचपन कब बीता याद नहीं
पर इतना अवश्य याद रहा
वह जीवन सीधा साधा था
चिंताओं से बहुत दूर था |
पर नशा
शराब
या काँच की बोतल में नहीं
मन के भीतर ही कहीं
रचा बसा होता है
लिख देने से कुछ
भी नहीं होता है
समझ में आ ही गई
अगर एक बात
बात में दम ही
नहीं रहता है
धन्यवाद
आज की नयी पुरानी हलचल में ुलदीप ठाकुरका अभिवादन स्विकारें... पेश है आज की हलचल इन चुने हुए लिंकों के साथ
जो सदा पुण्य में तत्पर रहते, नाव ऋषियों ने भेजी है
सुंदर आसन बिछा है इसमें, तीव्र गति से यह आई है
पहले पार कराया उनको, तब ऋषियों के संग मुनि ने
स्वयं उतरे फिर उत्तर तट पर, निकले पुरी की शोभा लखने
जो दिल की बात बताये ना,
दिल की लगी को भुलाये ना !
ऐसे शख्स से दिल लगाना ,
आत्मघात जैसा होता है !
भारत वर्ष में गुरूओं की महत्ता युगकालीन कही जा सकती है।रामायण से लेकर महाभारत और श्रीमद्भगवत्गीता से लेकर गुरू गीता तक में आचार्यों और गुरूओं की महिमा
का बखान किया गया है। गुरूकुल की शिक्षा व्यवस्था ने राजकुमारों को धन- संपन्नता के वैभव से दूर रखते हुए गुरूचरणों में वंदना करते हुए जीवन के सार को समझने
और महान व्यक्ति बनने में योगदान किया है। प्रतिवर्ष आषाढ़ शुल्क पूर्णिमा तिथि गुरू पूर्णिमा के रूप में मनायी जाती है। अपने गुरूओें के प्रति अगाध श्रद्धा
रखने वालों के लिए यह दिन मार्ग- दर्शन प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ अवसर माना जा सकता है। गुरू के जीवित न रहने पर उनकी शिक्षा को चेतन मन में लाते हुए आत्मसात
करना ही शिष्य का परम कर्तव्य होना चाहिए। शिक्षा और दीक्षा दोनों ही एक महान गुरू की तपस्या से निखरे मानवीय कल्याण के मुख्य आधार तत्व सिद्ध होते आ रहे है।
संसद के पंडो की बाजीगरी देखो
कमंडलो को गंदा बना रखा है...!!!
इंसाफ के तराजू पर भरोसा कहाँ
कानून को अंधा बना रखा है...!!!
बहुत रोया जब जन्म लिया
माँ की गोद में सोया
सब की बाहों में झूला
लगा खुशियों का मेला |
बचपन कब बीता याद नहीं
पर इतना अवश्य याद रहा
वह जीवन सीधा साधा था
चिंताओं से बहुत दूर था |
पर नशा
शराब
या काँच की बोतल में नहीं
मन के भीतर ही कहीं
रचा बसा होता है
लिख देने से कुछ
भी नहीं होता है
समझ में आ ही गई
अगर एक बात
बात में दम ही
नहीं रहता है
धन्यवाद