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जीवन-फूल॥

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नमस्ते...
    आज की हलचल में आप का स्वागत है...सब से पहले आज का चिंतन...


जहाँ रक्‍त सम्‍बंध होते हैं,
वहाँ बड़े से बड़े अपराध को लोग न चाहकर भी अनदेखा कर देते हैं
क्‍योंकि उससे कई रिश्‍ते जुड़े होते हैं
बात दूसरों की हो तो हमसब न्‍यायधीश बन जाते हैं

अनुरंजना :
  अर्द्धनारीश्वर
प्रस्तुतकर्ता
Anuj Agarwal

सोचा ना था....:
 अब बस
प्रस्तुतकर्ता
Neha

जिज्ञासा:
 भारत-जापान रिश्तों का सूर्योदय
प्रस्तुतकर्ता
pramod joshi

Fursat Ke Raat Din:
 LAMHA... / लम्हा....
प्रस्तुतकर्ता
Aparna Bose

बावरा मन:
 तुम्हारी चाहना
प्रस्तुतकर्ता
सु..मन(Suman Kapoor)

उच्चारण:
 गीत-दो शब्द
प्रस्तुतकर्ता
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

निर्झर:
 वृंदा की अद्भुत छवि
प्रस्तुतकर्ता
Brijesh Neeraj

'अनामिका':
 *** अजनबी ***
प्रस्तुतकर्ता
अमिय प्रसून मल्लिक

अनुभूति :
 नरेन्द्र मोदी का पहला जनहित कार्य
प्रस्तुतकर्ता
कालीपद "प्रसाद"

साहित्य प्रेमी संघ:
          यक्ष प्रश्न
प्रस्तुतकर्ता
Ghotoo
       
आज की हलचल का सफर बस यहीं तक...
चलते-चलते आज की कविता...

जीवन-फूल / सुभद्राकुमारी चौहान
मेरे भोले मूर्ख हृदय ने
कभी न इस पर किया विचार।
विधि ने लिखी भाल पर मेरे
सुख की घड़ियाँ दो ही चार॥
छलती रही सदा ही
मृगतृष्णा सी आशा मतवाली।
सदा लुभाया जीवन साकी ने
दिखला रीती प्याली॥
मेरी कलित कामनाओं की
ललित लालसाओं की धूल।
आँखों के आगे उड़-उड़ करती है
व्यथित हृदय में शूल॥
उन चरणों की भक्ति-भावना
मेरे लिए हुई अपराध।
कभी न पूरी हुई अभागे
जीवन की भोली सी साध॥
मेरी एक-एक अभिलाषा
का कैसा ह्रास हुआ।
मेरे प्रखर पवित्र प्रेम का
किस प्रकार उपहास हुआ॥
मुझे न दुख है
जो कुछ होता हो उसको हो जाने दो।
निठुर निराशा के झोंकों को
मनमानी कर जाने दो॥
हे विधि इतनी दया दिखाना
मेरी इच्छा के अनुकूल।
उनके ही चरणों पर
बिखरा देना मेरा जीवन-फूल॥






धन्यवाद...

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