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Channel: भूले बिसरे-नये पुराने
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महीने का दूसरा दिन....मंगल वारीय नयी पुरानी हलचल

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मन गई छुट्टी
निपट गए त्योहार
पर मन यहीं रहा

चलें आज की संक्षिप्त हलचल की ओर ...

यूँ जाल बिछाये बैठें है
सब आखेटक मंतर मारे
आसमान के काले बादल
जैसे ,जमा हुए  है सारे.


कहने की नहीं हसरत ,मेरे लहू में है ,
सहने की नहीं हिम्मत ,मेरे लहू में है ,
खंजर लिए खड़ा है ,मेरा ही भाई मुझ पर ,
जीने की नहीं उल्फत ,मेरे लहू में है .


पहले किसने
सोचा था ऐसा भी
इतनी जल्दी ही
ये होने लगेगा
कितनी बेवकूफी
कर रहे थे इससे
पहले के सपने
दिखाने वाले लोग
अब पछता रहे होंगे 


 "जिंदा रखना मुमकिन नहीं जहाँ..
इस भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में..
तुमने पहने रखा जाने कैसे..
इन हर्फों के ताबीज़ को.. 


नरम हरी घास पर रखा हुआ हर कदम,
एक ठंडी लहर उसके शरीर के अंदर भेज रहा था. 
ऐसा लगता था कि  ओस  की नमी
उसके पैरों से होते हुए थके हुए शरीर के
हर हिस्से तक पहुँच रही थी,
तेज़ धूप से जले हुए मन
प्राण को फिर से ऊर्जा मिल रही थी.


अभी यही प्रभु सस्ता मोदक
महंगाई मुंह बाये जब तक
अच्छे दिन जब आयेंगे
महंगा मोदक लायेंगे


गीतिका का तानाबाना - ओम नीरव
ग़ज़ल एक काव्य विधा है
जिसका प्रयोग किसी भी भाषा में किया जा सकता है !


और अंत में 
एक सप्ताह की अनुपस्थिति ने
आलसी बना दिया मुझे
विदा...
यशोदा 



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