यशोदा का नमन स्वीकारें
पता नहीं क्यों
हर बार की तरह
दो तारीखें हैं
यहां तक
पितृ-पक्ष को भी नहीं बख्सा
पंचागों ने.....
चलिये चलते हैं हलचल की ओर..............
जीवण री आपाधापी स्यूं
थोड़ो टेम काढ़'र आवो
आपा सगळा सागै मिल'र
पुजा कुँवारी कन्यावां नै
समझ लिछमी जी रो रूप।
कितना अच्छा होगा जब,
बिजली पानी न आयेगा |
ऐसी कूलर नहीं चलेंगे,
पंखा नाच नचाएगा ||
तू पिघल रही थी
आँखों से
मोटे मोटे आँसू
ढुलक रहे थे गालों पर
बोझ लिए मन में पहाड़ सा
बैठ रहा था जी पल पल
हमने बहुत ज़माने देखे
थानों में मयखाने देखे
गुण्डे ,चोर, उचक्कों ,रहजन
सबके पहुंच ठिकानें देखे
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल, जिगर, तिश्नए-फरयाद आया
ज़िंदगी यूं भी गुज़र ही जाती
क्यूँ तेरा राहगुज़र याद आया
किसी एक क्षण में
सहसा उड़ा ले जाता कोई
सारी खुशियां
सारा संतोष
सरक जाता
आधार आनंद का
काटो पेड़
जंगल जंगल
मत खेलो
कुदरत से खेल
कर देगी अदिति
सर्वनाश जगत का
हो जायेगा
तुम्हारे हाव-भाव,
तौर-तरीके,चाल-ढाल,
मुझे बिल्कुल पसंद नहीं,
मैं आँखें बंद करके सोचूँ,
तो कुछ भी ऐसा नहीं दिखता,
जो मैं तुममें पसंद कर सकूं,
पुनः नमस्कार
अब आज्ञा दें
फिर मिलते हैं नयें लिंक्स के साथ
यशोदा
पता नहीं क्यों
हर बार की तरह
दो तारीखें हैं
यहां तक
पितृ-पक्ष को भी नहीं बख्सा
पंचागों ने.....
चलिये चलते हैं हलचल की ओर..............
जीवण री आपाधापी स्यूं
थोड़ो टेम काढ़'र आवो
आपा सगळा सागै मिल'र
पुजा कुँवारी कन्यावां नै
समझ लिछमी जी रो रूप।
कितना अच्छा होगा जब,
बिजली पानी न आयेगा |
ऐसी कूलर नहीं चलेंगे,
पंखा नाच नचाएगा ||
तू पिघल रही थी
आँखों से
मोटे मोटे आँसू
ढुलक रहे थे गालों पर
बोझ लिए मन में पहाड़ सा
बैठ रहा था जी पल पल
हमने बहुत ज़माने देखे
थानों में मयखाने देखे
गुण्डे ,चोर, उचक्कों ,रहजन
सबके पहुंच ठिकानें देखे
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल, जिगर, तिश्नए-फरयाद आया
ज़िंदगी यूं भी गुज़र ही जाती
क्यूँ तेरा राहगुज़र याद आया
किसी एक क्षण में
सहसा उड़ा ले जाता कोई
सारी खुशियां
सारा संतोष
सरक जाता
आधार आनंद का
काटो पेड़
जंगल जंगल
मत खेलो
कुदरत से खेल
कर देगी अदिति
सर्वनाश जगत का
हो जायेगा
तुम्हारे हाव-भाव,
तौर-तरीके,चाल-ढाल,
मुझे बिल्कुल पसंद नहीं,
मैं आँखें बंद करके सोचूँ,
तो कुछ भी ऐसा नहीं दिखता,
जो मैं तुममें पसंद कर सकूं,
पुनः नमस्कार
अब आज्ञा दें
फिर मिलते हैं नयें लिंक्स के साथ
यशोदा