नमस्ते...
आज की हलचल का आरंभ इस सुंदर बाल कविता से...
मुझको दो वरदान प्रभू!
मैं सबका ऊँचा नाम करूँ।
मानवता के लिए जगत में,
अच्छे-अच्छे काम करूँ।
अब अंत में...
और अंत में... मृत्यु और कवि... रचनाकार----गजानन माधव मुक्तिबोध
घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर
धन्यवाद....
आज की हलचल का आरंभ इस सुंदर बाल कविता से...
मुझको दो वरदान प्रभू!
मैं सबका ऊँचा नाम करूँ।
मानवता के लिए जगत में,
अच्छे-अच्छे काम करूँ।
- Seema Srivastava
- उसने खींची एक लकीर
फिर दूसरी फिर तीसरी
बना दिया एक नक्शा पूरा
और अब उलझा हुआ है वो
उन लकीरों में - DrRajendra Tela Nirantar
- मनुष्य निरंतर
पथ से भटकता है
स्व्यं से अधिक
दूसरों पर दृष्टि रखता है - लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`
- aउसी तरह परमात्मा केआदेश पर देवताओँने छन्दोँ का उच्चारण किया।
जिसे सभी प्राणी भी तद्पश्चात बोलने लगे व हर्षोत्पाद्क अन्न व उर्जा को प्राप्त करने लगे। इस वाणी को ” राष्ट्री ” कहा गया। - Anita
- प्रकट हुए भगवान वृषभ ध्वज, जब बीता था कुछ काल
पूछ तप करने का कारण, थे उत्सुक वर देने तत्काल
कर प्रणाम कहा मुनि ने, यदि आप संतुष्ट हैं मुझसे
अंग, उपांग, व सहित उपनिषद, धनुर्वेद मुझे प्रदान करें - Ashish Awasthi
- यह एक नि: शुल्क उपकरण के साथ-साथ सहज व प्रयोग करने में आसान सॉफ्टवेयर है इसकी विशेषता इसका पेशेवर स्क्रीन उपकरण होना है. इसके साथ, आप इसकी सहायता से HD
में वेबिनार, खेल और स्काइप वीडियो रिकॉर्ड कर सकते हैं - Dr.Lok Setia
- अभी तो प्यार का मौसम है और रुत सुहानी है ,
कभी किसी हसीना को गुलाब क्यों नहीं देते
उन्हें अभी बता देना ,यही गिला है "तनहा"को ,
हमें कभी सभी अपने अज़ाब क्यों नहीं देते - Asha Saxena
- दीन दुनिया से
दूर बहुत
मानो जुदाई का
जश्न मना रहे हैं | - DrZakir Ali Rajnish
- डॉ0 मोक्षगुण्डम् विश्वेश्वरैयाआज हमारे बीच नहीं हैं। पर उन्होंने भारत निर्माण के लिए इतने कार्य किये हैं, कि जब तक यह संसार रहेगा, वे ‘आधुनिक भारत
के विश्वकर्मा’ के रूप में याद किये जाएंगे। - प्रवीण पाण्डेय
- त्याग, समर्पण में जीवन,
थक सकता है, खो सकता है ।
प्रत्याशा या अभिलाषा,
मन अकुलाये, हो सकता है ।
हो न प्राप्त अधिकारों को, यह आशा हृदय सँजोता हूँ ।
फल बरसायें यज्ञ तुम्हे, आहुति बन प्रस्तुत होता हूँ - Tushar Raj Rastogi
- भेद-भाव को त्याग भाईचारे को अपनाने पर
जनता के ह्रदय में प्यार का भाव जगाने पर
जाति,ऊँच,नीच,भाषा,धर्म की बेडी तोड़ने पर
'निर्जन'देता ज़ोर मानव को मानवता से जोड़ने पर
अब अंत में...
और अंत में... मृत्यु और कवि... रचनाकार----गजानन माधव मुक्तिबोध
घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर
व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयकर
है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती,
जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर
बहुत संकुचित छोटा घर है, दीपालोकित फिर भी धुंधला,
वधू मूर्छिता, पिता अर्ध-मृत, दुखिता माता स्पंदन-हीन
घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, कवि का मन गीला
"ये सब क्षनिक, क्षनिक जीवन है, मानव जीवन है क्षण-भंगुर"।
ऐसा मत कह मेरे कवि, इस क्षण संवेदन से हो आतुर
जीवन चिंतन में निर्णय पर अकस्मात मत आ, ओ निर्मल !
इस वीभत्स प्रसंग में रहो तुम अत्यंत स्वतंत्र निराकुल
भ्रष्ट ना होने दो युग-युग की सतत साधना महाआराधना
इस क्षण-भर के दुख-भार से, रहो अविचिलित, रहो अचंचल
अंतरदीपक के प्रकाश में विणत-प्रणत आत्मस्य रहो तुम
जीवन के इस गहन अटल के लिये मृत्यु का अर्थ कहो तुम ।
क्षण-भंगुरता के इस क्षण में जीवन की गति, जीवन का स्वर
दो सौ वर्ष आयु होती तो क्या अधिक सुखी होता नर?
इसी अमर धारा के आगे बहने के हित ये सब नश्वर,
सृजनशील जीवन के स्वर में गाओ मरण-गीत तुम सुंदर
तुम कवि हो, यह फैल चले मृदु गीत निर्बल मानव के घर-घर
ज्योतित हों मुख नवम आशा से, जीवन की गति, जीवन का स्वर
धन्यवाद....