नमस्ते...
जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,
जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!।९०।
और चिता पर जाये उंढेला पत्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालों को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला
नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला
काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला,
जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला
ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला,
पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला,
और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला,
किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला
अब चलते हैं आज की हलचल की ओर...
शब्दों के हैं सौदागर यहाँ ,शब्दों के दीवाने हैं
नापना चाहो किसी को अगर शब्द ही पैमाने हैं
शब्दों से दुखित होते हैं, हम खुशियाँ इन्ही से पाते हैं
अंतर्मन के सभी फसाने इन्ही से महसूस किये जाते हैं
जिसकी बदौलत कर सकें, अपना सभी विकास।।
कहे 'प्रेम' कविराय, काम इस पर हुआ शुरू
जल्दी ही कहलायेगा, भारत अब विश्व गुरू
चौराहे पे भीख मांगता है, देश का मुस्तकबिल।
उनको क्या फिकर, जिनके जूतों में भी हीरे जड़े हैं।।
किसी बुजुर्ग के चेहरे को जरा गौर से पढ़ो
हर झुर्री गवाह है, वो कितनी आफतों से लड़े हैं
एस.आर.शर्मा खुश लग रहा था। वह बसन्ती का चेहरा देखता चेहरे पर दर्द के भाव नहीं थे। जाने कहाँ चला गया दर्द। उस समय बसन्ती उसका चेहरा निहार रही थी। इस जिज्ञासा
में कि वह कुछ कहेगा। बताएगा।
माल पर इसी तरह टहलते दो चक्कर लगाने के बादवे चले गए। माल फिर दफ्तर के बाबुओं, सैलानियों ओर नव युवाओं से भरने लगा था
यात्रा बढ़ती, थी सुखद राह,
ऊर्जस्वित जीवन का प्रवाह ।
विस्तार सिमटते, पग बढ़ते
मन-निश्चय हम पूरा करते
सीएनएन चैनल पर शो करने वाले फरीद जकारिया ने उनका साक्षात्कार लिया और उस साक्षात्कार के बाद वो कह रहे हैं कि
नरेंद्र मोदी विश्व नेता बनने की क्षमता रखते हैं
मैंने उन्हें कम करके आंका। अब भले ही जकारिया के पुराने विश्लेषणों के आधार पर इसकी विश्वसनीयता को कसौटी पर खरा न माना जाए लेकिन, मोदी के व्यक्तित्व और उसके
तथ्यों के आधार पर ये तय है कि दुनिया में भारत की ताकत देखने का नजरिया बदल रहा है। बाकी बातें अमेरिका दौरे के बाद ...
बिछाएँ हों किसी ने जब,
वफा की राह में काँटे,
लगीं हो दोस्ती में जब,
जफाओं की कठिन गाँठे,
दबे जज्बात कहने का,
बहाना हाथ आया है
हृदय की बात कहने को,
कलम अपना चलाया है।
खुदा का शुक्र है
के तुम लौट आए..
वो दौर ताज़गी के फिर चल पड़े हैं
वो प्याले प्यार के दो
फिर संग हो गए हैं
मस्ती भरे दिन
अल्हड़ हर पल छीन........
बारिश मे भीगना
कीचड़ मे खेलना
वो कागज़ की नाव बनाना.......
होली मे रंग बिरंगे
गुब्बारे मारना
तो एक दिन न कंधा बचेगा न बंदूक। अच्छे दिन 'लव जिहाद'के शगूफे से नहीं 'जन-हित'से आएंगे।
अब भी अगरन चेते तो फिर न केवल मेरे मोहल्ले के बल्कि पूरे देश के प्रगतिशील बुद्धिजीवि ऐसे ही मिठाईयां बांटेंगे और जश्न मनाएंगे। बाकी आपकी मर्जी...
वो जो एक सेलोफेन जैसा कुछ है न
हमारे तुम्हारे जज़्बातों के ठीक बीचोबीच
उसे चीर के अगर कोई आवाज़
रूह तक पहुँच जाती तो?
या कोई मुलायम शाम उसे पिघला देती..
व्यंग्य-छुरी दिल को चुभती थी ;
चुप रहकर सह जाते थे ,
रो लेते थे सबसे छिपकर
सच्ची बात तुम्हे बतलाएं
बहुत से लोग
कभी भी कुछ भी
नहीं लिखते हैं
किसने कह दिया
लिखना बहुत ही
जरूरी होता है
पर प्राजय चाहे,
धर्म या अधर्म से हुई हो,
प्राजय तो प्राजय है...
सब लोग जी रहे हैं मशीनों के दौर में
अब आदमी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा
आई थी बाढ़ गाँव में, क्या-क्या न ले गई
अब तो किसी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा
धन्यवाद....
जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,
जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!।९०।
और चिता पर जाये उंढेला पत्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालों को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला
नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला
काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला,
जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला
ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला,
पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला,
और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला,
किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला
अब चलते हैं आज की हलचल की ओर...
शब्दों के हैं सौदागर यहाँ ,शब्दों के दीवाने हैं
नापना चाहो किसी को अगर शब्द ही पैमाने हैं
शब्दों से दुखित होते हैं, हम खुशियाँ इन्ही से पाते हैं
अंतर्मन के सभी फसाने इन्ही से महसूस किये जाते हैं
जिसकी बदौलत कर सकें, अपना सभी विकास।।
कहे 'प्रेम' कविराय, काम इस पर हुआ शुरू
जल्दी ही कहलायेगा, भारत अब विश्व गुरू
चौराहे पे भीख मांगता है, देश का मुस्तकबिल।
उनको क्या फिकर, जिनके जूतों में भी हीरे जड़े हैं।।
किसी बुजुर्ग के चेहरे को जरा गौर से पढ़ो
हर झुर्री गवाह है, वो कितनी आफतों से लड़े हैं
एस.आर.शर्मा खुश लग रहा था। वह बसन्ती का चेहरा देखता चेहरे पर दर्द के भाव नहीं थे। जाने कहाँ चला गया दर्द। उस समय बसन्ती उसका चेहरा निहार रही थी। इस जिज्ञासा
में कि वह कुछ कहेगा। बताएगा।
माल पर इसी तरह टहलते दो चक्कर लगाने के बादवे चले गए। माल फिर दफ्तर के बाबुओं, सैलानियों ओर नव युवाओं से भरने लगा था
यात्रा बढ़ती, थी सुखद राह,
ऊर्जस्वित जीवन का प्रवाह ।
विस्तार सिमटते, पग बढ़ते
मन-निश्चय हम पूरा करते
सीएनएन चैनल पर शो करने वाले फरीद जकारिया ने उनका साक्षात्कार लिया और उस साक्षात्कार के बाद वो कह रहे हैं कि
नरेंद्र मोदी विश्व नेता बनने की क्षमता रखते हैं
मैंने उन्हें कम करके आंका। अब भले ही जकारिया के पुराने विश्लेषणों के आधार पर इसकी विश्वसनीयता को कसौटी पर खरा न माना जाए लेकिन, मोदी के व्यक्तित्व और उसके
तथ्यों के आधार पर ये तय है कि दुनिया में भारत की ताकत देखने का नजरिया बदल रहा है। बाकी बातें अमेरिका दौरे के बाद ...
बिछाएँ हों किसी ने जब,
वफा की राह में काँटे,
लगीं हो दोस्ती में जब,
जफाओं की कठिन गाँठे,
दबे जज्बात कहने का,
बहाना हाथ आया है
हृदय की बात कहने को,
कलम अपना चलाया है।
खुदा का शुक्र है
के तुम लौट आए..
वो दौर ताज़गी के फिर चल पड़े हैं
वो प्याले प्यार के दो
फिर संग हो गए हैं
मस्ती भरे दिन
अल्हड़ हर पल छीन........
बारिश मे भीगना
कीचड़ मे खेलना
वो कागज़ की नाव बनाना.......
होली मे रंग बिरंगे
गुब्बारे मारना
तो एक दिन न कंधा बचेगा न बंदूक। अच्छे दिन 'लव जिहाद'के शगूफे से नहीं 'जन-हित'से आएंगे।
अब भी अगरन चेते तो फिर न केवल मेरे मोहल्ले के बल्कि पूरे देश के प्रगतिशील बुद्धिजीवि ऐसे ही मिठाईयां बांटेंगे और जश्न मनाएंगे। बाकी आपकी मर्जी...
वो जो एक सेलोफेन जैसा कुछ है न
हमारे तुम्हारे जज़्बातों के ठीक बीचोबीच
उसे चीर के अगर कोई आवाज़
रूह तक पहुँच जाती तो?
या कोई मुलायम शाम उसे पिघला देती..
व्यंग्य-छुरी दिल को चुभती थी ;
चुप रहकर सह जाते थे ,
रो लेते थे सबसे छिपकर
सच्ची बात तुम्हे बतलाएं
बहुत से लोग
कभी भी कुछ भी
नहीं लिखते हैं
किसने कह दिया
लिखना बहुत ही
जरूरी होता है
पर प्राजय चाहे,
धर्म या अधर्म से हुई हो,
प्राजय तो प्राजय है...
सब लोग जी रहे हैं मशीनों के दौर में
अब आदमी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा
आई थी बाढ़ गाँव में, क्या-क्या न ले गई
अब तो किसी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा
धन्यवाद....