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Channel: भूले बिसरे-नये पुराने
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दो कौड़ी के दो ड्राफ्ट ख्याल

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नमस्ते !
हलचल की रविवारीय प्रस्तुति मे आपका स्वागत है इन लिंक्स के साथ-

बीत गये कितने दिन!
पता ही न चला


सागर जी के  

मैं या अहम्
ज़रूरी कौन ?

कुर्सियों में बैठ लेने का मतलब बातें करना ही नहीं होता है हमेशा 
उलूक टाइम्स पर सुशील जी

"अशआरों से मुकम्मल ग़ज़ल बन गयी"
एहसास की लहरों पर


हिन्दी हैं हम सब, हमे बांटते क्यों हो ?

और अब इजाज़त दीजिये यशवन्त यशको इस गीत का आनंद लेते हुए -




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