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Channel: भूले बिसरे-नये पुराने
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अपत्नी - ममता कालिया

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हम लोग अपने जूते समुद्र तट पर ही मैले कर चुके थे। जहाँ ऊँची-ऊँची सूखी रेत थी, उसमें चले थे और अब हरीश के जूतों की पॉलिश व मेरे पंजों पर लगी क्यूटेक्स धुंधली हो गयी थी। मेरी साड़ी क़ी परतें भी इधर-उधर हो गयीं थीं। मैं ने हरीश से कहा- उन लोगों के घर फिर कभी चलेंगे। - हम कह चुके थे लेकिन! - मैं ने आज भी वही साडी पहनी हुई है। -मैं ने बहाना बनाया। वैसे बात सच थी। ऐसा सिर्फ लापरवाही से हुआ था।

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