नमस्कार एवं शुभप्रभात...
आज मई महिने का अंतिम दिन है और कल वर्ष के चठे महिने का प्रारंभ हो रहा है...मानसून आने वाली है और सभी चाहते हैं शीतलता पाना... बस गर्मी कुछ दिनों की महमान है।
पेश है शुकरवारीय नई पुरानी हलचल के लिए आप की रचनाओं के मेरी पसंद के कुछ लिंक... सन्यासी बोला” जरा सोचो , तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया….जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्याएक इंसान को नहीं ? विजयी भवः... हम अगली पीढ़ी को सौंप रहे हैं अपनी संघर्ष-चेतना अपनी असफलताओं के इतिहास और छोटी-मोटी सफलताओं से उपजा यह विश्वास कि मुक्ति कोई असंभव लक्ष्य नहीं है ... सट्टा, आतंक, रेप, करप्शन...रोते रहेंगे लाखों देश में, वो फिर भी मुस्काएगा... सट्टा, आतंक, रेप, करप्शन, रुके कभी हैं रुकेंगे क्या... याद फिर उसकी आयी हमें देर तक... डॉ.सुभाष भदौरियावक्त आया तो हमको पता ये चला, हमको कितने थे झूटे भरम दोस्तो. ग़ैर तो ग़ैर उनका गिला क्या करें, अपनों के भी बहुत हैं करम दोस्तो. ये इमानदारी बढ़ाने वाली दवाई सच में कही मिलती है क्या...?(कुँवर जीआज जहा देखो वही भ्रष्टाचार, कपट, झूठ और बेईमानी.... बस सब यही दिखता है! कहते है पहले ये सब गुण "किसी अज्ञात डर" से कही कोने छुप कर रहते थे! यदा-कदा ही समाज में दिखने को मिलते थे!कही दिख गए जिसके संग तो उसे शर्मिंदगी भी महसूस होती दिखती थी! चाँद कैसा है........अरुण कुमार निगमस्वर्ग होता कहाँ , बताना था गाँव अपना उसे घुमा लाया | गम नहीं है हमें जुदाई का फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया | सफ़र... अमन मिश्रनित नयी वेला की आशा , समय चक्र का खेल तमाशा , रखते हुए ह्रदय मोम सा , "अमन "पत्थर का बन जाता हु .... बस आगे बढता जाता हु बस आगे बढता जाता हु ... एक अहसास...MANOJ KAYALमिलने को आतुर तुमसे तलाश रही तेरा साया फिर क्यों नहीं तुम मेरे पास हो गजल...गायत्री गुप्ता 'गुंजनयूँ सरेआम जिस्म नोंचते हैं अबला का। क्या उनकी अपने ख़ुदा से ही परदेदारी न रही॥३॥ हम तो जीते हैं यूँ, कि जानते हैं जिन्दा हैं। वरना जीने की नीयत तुम जैसी, हमारी न रही॥४॥
आज की हलचल में बस इतना ही... मिलेंगे अगले शुकरवार को आप की ही प्यारी प्यारी रचनाओं के साथ...
धन्यवाद
चलते चलते मेरी पसंद का ये गीत आप के लिए
आज मई महिने का अंतिम दिन है और कल वर्ष के चठे महिने का प्रारंभ हो रहा है...मानसून आने वाली है और सभी चाहते हैं शीतलता पाना... बस गर्मी कुछ दिनों की महमान है।
पेश है शुकरवारीय नई पुरानी हलचल के लिए आप की रचनाओं के मेरी पसंद के कुछ लिंक... सन्यासी बोला” जरा सोचो , तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया….जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्याएक इंसान को नहीं ? विजयी भवः... हम अगली पीढ़ी को सौंप रहे हैं अपनी संघर्ष-चेतना अपनी असफलताओं के इतिहास और छोटी-मोटी सफलताओं से उपजा यह विश्वास कि मुक्ति कोई असंभव लक्ष्य नहीं है ... सट्टा, आतंक, रेप, करप्शन...रोते रहेंगे लाखों देश में, वो फिर भी मुस्काएगा... सट्टा, आतंक, रेप, करप्शन, रुके कभी हैं रुकेंगे क्या... याद फिर उसकी आयी हमें देर तक... डॉ.सुभाष भदौरियावक्त आया तो हमको पता ये चला, हमको कितने थे झूटे भरम दोस्तो. ग़ैर तो ग़ैर उनका गिला क्या करें, अपनों के भी बहुत हैं करम दोस्तो. ये इमानदारी बढ़ाने वाली दवाई सच में कही मिलती है क्या...?(कुँवर जीआज जहा देखो वही भ्रष्टाचार, कपट, झूठ और बेईमानी.... बस सब यही दिखता है! कहते है पहले ये सब गुण "किसी अज्ञात डर" से कही कोने छुप कर रहते थे! यदा-कदा ही समाज में दिखने को मिलते थे!कही दिख गए जिसके संग तो उसे शर्मिंदगी भी महसूस होती दिखती थी! चाँद कैसा है........अरुण कुमार निगमस्वर्ग होता कहाँ , बताना था गाँव अपना उसे घुमा लाया | गम नहीं है हमें जुदाई का फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया | सफ़र... अमन मिश्रनित नयी वेला की आशा , समय चक्र का खेल तमाशा , रखते हुए ह्रदय मोम सा , "अमन "पत्थर का बन जाता हु .... बस आगे बढता जाता हु बस आगे बढता जाता हु ... एक अहसास...MANOJ KAYALमिलने को आतुर तुमसे तलाश रही तेरा साया फिर क्यों नहीं तुम मेरे पास हो गजल...गायत्री गुप्ता 'गुंजनयूँ सरेआम जिस्म नोंचते हैं अबला का। क्या उनकी अपने ख़ुदा से ही परदेदारी न रही॥३॥ हम तो जीते हैं यूँ, कि जानते हैं जिन्दा हैं। वरना जीने की नीयत तुम जैसी, हमारी न रही॥४॥
आज की हलचल में बस इतना ही... मिलेंगे अगले शुकरवार को आप की ही प्यारी प्यारी रचनाओं के साथ...
धन्यवाद
चलते चलते मेरी पसंद का ये गीत आप के लिए