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सुगंध इश्क की भला क्या लिखूं मैं....इस माह का अंतिम बुधवारीय

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बुद्धि आज नहीं है मेरे पास
मेरी ही नहीं.....
संसार की सभी जनों की बुद्धि
ले गए हैं श्री गणेश जी
मरम्मत करने.....और उसमें
नया कुछ भरने
ताकि इन्सान कुछ
अच्छा सोचे....अच्छा करे..




क्या यह असामान्य पर सहज प्राकृतिक आपदा है  
जो सैकड़ों साल में घटित होती है?
क्या यह मनुष्य की नासमझी के कारण 

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पैदा हुए 
पर्यावरणीय असंतुलन का परिणाम है?
क्या यह असंतुलित नगर नियोजन और
कंक्रीट की इमारतों के निर्माण का परिणाम है?
क्या उत्तराखंड सरकार की बेरुखी इसके लिए जिम्मेदार है?




 

मां धारी देवी के मंदिर को
विस्थापित नहीं किया गया होता
तो यह आपदा कभी नहीं आती।
 




इश्क में हूँ नहीं कि इश्क लिखूं मैं
इश्क के लिए अब क्या लिखूं मैं।


एक सवाल...
ये सवाल है ईश्वर से
ये सवाल है प्रकृति से
ये सवाल है कुदरत से
ये सवाल है कायनात से
क्यों........आखिर क्यों ???


कोई मुश्किल नहीं...
पत्थरों को काट कर जो राह गढ़ लें
जिन्दगी की 



प्यार की पूजा हमने की है सदा
यार को हमने तो रब – माना है



1 मिनट में दुनिया बदल जाती है,
हम तीसरे बड़े यूजर फिर भी इन्टरनेट सुस्त !
इसका मतलब है की २०१३ में
भारत इन्टरनेट usersके मामले में
चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है !



छल किसी का
बलि किसी की
कोल्हू का बैल
औरत की जात



साहेबा ! इश्क की डली मूंह में रखी है मैंने ............
और कुनैन से कुल्ला किया है ...........
खालिस मोहब्बत यूं ही नहीं हुआ करती ...........
एक डोरी सूरज की तपिश की लेनी पड़ती है


जाने क्यों इतना बहता है पानी
अपनी कल-कल में आज रचता
मन में कोई कहानी



आज बस इतना ही
आज्ञा चाहती है
यशोदा




 



 



 




 



 


 


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