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शीर्षकहीन!

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नमस्कार!
शनिवारीय प्रस्तुति मे आपका स्वागत है इन लिंक्स के साथ-
उड़ान

बापू  ने मनु  को  पुकारा ' मनु '
'क्या  हैं  बापू 'उसने  कहा
बापू  ने मनु  के  हाथो  को  अपने  हाथो  में  लेकर  कहा 'आज से ये हाथ सिर्फ  और  सिर्फ किताब  और  कलम  उठाएंगे; और  उसे  अपने  सीने  से  लगा  लिया।
मनु ,बापू  और  दादी  इन  तीनो  की  आँखों  से  ख़ुशी  के  आंसू  बह  रहे  थे।


प्यार बिना ज़िन्दगी लोग कैसे काटते होंगे जाना!
 उस शाम जब सूरज काले बादलों के पार छिप गया था, मैं कैसी बावली सी चली आई थी टेरिस पर और तुम्हारे कई बार आवाज़ देने पर जब लौटी, तुमने खूब डाटा था, और कहा था,
‘ऐसा मासूम सा चेहरा बना लेती हो कि डांटनेवाले को आप ही शर्मिंदगी हो जाए...’

शीर्षकहीन!  
भावों का कोलाज़ है यह, क्या दे शीर्षक! इसे शीर्षक विहीन ही रहने देते हैं, सब अपने अपने भाव अपना अपना हिस्सा और अपनी अपनी दुआएं चुन लेना!


बादलों के रंग 
अगस्त का महीना है। आजकल मौसम आदमी की जिंदगी की तरह तेजी से रंग बदलता है। कभी तेज धूप तो कभी जोरदार बारिश। यकबयक चलती है तेज पुरवाई और झरने लगते हैं कंदब से पीले पत्ते, पके फल। सागवान भी जोर-जोर सर हिलाता है। उसके पत्ते भी झरते हैं मगर उतने नहीं जितने कदंब के। बिचारा 'सागवान'! इसे क्या पता कि काटने के लिए लगाया है मालिक ने। 

!! मेरे बच्चे !!

दौड़ पड़ते है ..
रंग-बिरंगी तितलियों के पीछे
नहर में छलांग लगा देते है
नहाने के वक़्त
और हाथों से घोंघा निकाल लेते है//

हकीकत
मुरझाये
जीर्ण शीर्ण विकृत
सहमे से चेहरे....
कुछ खोजती हुयी
बीमार पीली पीली आँखे.....
न जाने कब लड़खडा कर
"साईंलेंसर" लगे
गिर जाने वाले कदम........
अँधेरी संकरी गलियों में
छीना झपटी करते हाथ.......
सदियों से लावारिस फुटपाथ पर
धकेल दिए जाते हैं

~यशवन्त माथुर
 

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