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हमें तो लूट लिया मिल के मॉल वालों ने

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नमस्कार!
रविवारीय प्रस्तुति मे आपका स्वागत है इन लिंक्स के साथ-



साहित्यिक परिवार
ज्ञान बोझ बनता वहीं, अहंकार हो बीज।
कैसे सुलझाएं इसे, सोच सुमन नाचीज।।

जो जिसने हासिल किया, वही अपरिमित ज्ञान।
ऐसा जो सोचे सुमन, उपजेगा अभिमान।।


शब्दों की तलाश ……… 
शब्द यूँ ही भटकते - अटकते रहे
कभी ख़्वाबों तो कभी ख़यालों में
इक नामालूम सी श्वांस सरीखी
मासूम सी पनाह की तलाश में


छोटी-छोटी चिप्पियाँ... 
उस लम्हें में,
 रात का स्याह रंग बदल रहा था 
 तुम्हें याद तो होगा न  
चांदनी मेरा हाथ थामेसो रही थी 
गहरी नींद में,  
और रौशन कर रही थी  
मेरे दिल का हर एक कोना...


वो.… और उसका परमेश्वर 
जब वो
रोज़ शाम , डरी  सहमी
घर लौटती है
तो उसका परमेश्वर
लातों  घूंसों से
उसकी थकान मिटाता है
और  धुत , बेदम वहीं , जमीन पर लुढ़क जाता  है
वो उठती है
डरे सहमे , हुसक रहे बच्चों को
सीने से लगाती है


हमें तो लूट लिया मिल के मॉल वालों ने
अब आप कहेंगे कि ऐसा कैसे कह सकते हैं आप? त पहिली बात त ई है कि हम कुछ कह नहीं रहे हैं। लिख रहे हैं। अपना अनुभव बता रहे हैं। पढियेगा और मुलाहिजा फ़रमाइयेगा।
शहीद डॉ डाभोलकर पर डॉ अनन्त फड़के
गत १४ वर्षों से डाभोलकर अंध विश्वास विरोधी कानून लाने के लिए अभियान छेड़े हुए थे।धर्म के नाम पर धोखाधड़ी,फर्जीवाड़ा और बर्बर कृत्यों को रोकने के लिए इस कानून में प्रावधान का प्रस्ताव है। सत्ताधारी दल का यह दिवालियापन है कि कई बार वादा करने के बावजूद भगवा ब्रिगेड के थोड़े से दबाव के आगे वे झुक जाते रहे हैं और मामला टलता आया है । इन पार्टियों के भीतर भी जो नई पौध आई है उनमें से कई खुद बाबाओं की शरन में रहते हैं।



 ~यशवन्त माथुर 
 
 

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