सादर अभिवादन करती है यशोदा
ये रहे आज के लिंक्स.....
फूल के बदले चली खूब दुनाली यारों,
बात बढ़ती ही गई जितनी संभाली यारों
दूध नागों को यहाँ मुफ्त मिला करता है,
पीती है मीरा यहाँ विष की पियाली यारों
बात बढ़ती ही गई जितनी संभाली यारों
दूध नागों को यहाँ मुफ्त मिला करता है,
पीती है मीरा यहाँ विष की पियाली यारों
''आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है ..''
किसी शायर ने कहा है -
''कौन कहता है आसमाँ में सुराख़ हो नहीं सकता ,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों .''
किसी शायर ने कहा है -
''कौन कहता है आसमाँ में सुराख़ हो नहीं सकता ,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों .''
प्रेमी नहीं करते बातें
चाँद तारों की
नदी पहाड़ों की
लहरों किनारों की या
झड़ते चनारों की.....
कोयल की कूक में
हुक सी ......
अंतस से
उठती है एक आवाज़ ...
बिना साज़....
बरसो रे मेघा बरसो ...!!
जमाना है तिजारत का, तिज़ारत ही तिज़ारत है
तिज़ारत में सियासत है, सियासत में तिज़ारत है
नहीं अब वक़्त है, ईमानदारी का सचाई का
खनक को देखते ही, हो गया ईमान ग़ारत है
चाँद तारों की
नदी पहाड़ों की
लहरों किनारों की या
झड़ते चनारों की.....
कोयल की कूक में
हुक सी ......
अंतस से
उठती है एक आवाज़ ...
बिना साज़....
बरसो रे मेघा बरसो ...!!
जमाना है तिजारत का, तिज़ारत ही तिज़ारत है
तिज़ारत में सियासत है, सियासत में तिज़ारत है
नहीं अब वक़्त है, ईमानदारी का सचाई का
खनक को देखते ही, हो गया ईमान ग़ारत है
घर सुनते हीे गिरने लगती हैं दीवारें
ढहने लगती हैं छतें
आने लगती हैं आवाजें खिड़कियों के जोर से गिरने की
उतरने लगती हैं कानों में मां की सिसकियां
पिता की आवाजें कि बाहर चलो, जल्दी...
ढहने लगती हैं छतें
आने लगती हैं आवाजें खिड़कियों के जोर से गिरने की
उतरने लगती हैं कानों में मां की सिसकियां
पिता की आवाजें कि बाहर चलो, जल्दी...
छोटी सी ख़ुशी
क्या ऐसा कोई सिद्धांत है जिसपर इसका परखा जा सके?
शायद बड़ी ख़ुशी के चाह में स्वाभाविक रूप से उठने वाले छोटी -छोटी ख़ुशी कहीं न कहीं हर कदम पर स्वतः ही दम तोड़ देता
क्या ऐसा कोई सिद्धांत है जिसपर इसका परखा जा सके?
शायद बड़ी ख़ुशी के चाह में स्वाभाविक रूप से उठने वाले छोटी -छोटी ख़ुशी कहीं न कहीं हर कदम पर स्वतः ही दम तोड़ देता
और हमें पता भी नहीं चलता।
या उमंग और ख़ुशी ने अपना रूप बदल लिया हो और
मैं उसे समझ नहीं पा रहा हूँ। पता नहीं क्यों ?
और ये रही आज की अंतिम पिन पोस्ट
एक अखबार की कतरन
एक अखबार की कतरन
जिंदा शरीर
के गले से
निकलता
सुरीला संगीत हो
नर्तकी के
कोमल पैरों में
बंधे घुँघरूओं
की खनकती
आवाज हो
जरूरी होता है
कहीं ना कहीं
कुछ खोखला होना
के गले से
निकलता
सुरीला संगीत हो
नर्तकी के
कोमल पैरों में
बंधे घुँघरूओं
की खनकती
आवाज हो
जरूरी होता है
कहीं ना कहीं
कुछ खोखला होना
आज के लिये बस इतना ही
मिलते हैं फिर
मिलते हैं फिर