नमस्ते...
आज मेरे शहर में
सावन की पहली फुहार पड़ी है,
कुछ वैसी ही, जिसमें
पार साल, हम साथ-साथ
भीगे थे…
मिट्टी आज भी वैसे ही
गंधा रही है,
हवा की मादकता भी/वैसी ही है,
और
कजलाया है अंबर भी आज
उसी शाम की तरह, जब
सावन की तेज बौछारों में
भीगते हुए/तुम्हारी आँखों में
उतर आई थी
सपनों की हरियाली
और
जीवन एक खुशनुमा
फूल-सा लगने लगा था...!
आज/आज भी
सब कुछ
वैसा ही है, मगर तुम
दूर/कहीं दूर
बहुत दूर हो...!
[उमा अर्पिता]
आज मेरे शहर में
सावन की पहली फुहार पड़ी है,
कुछ वैसी ही, जिसमें
पार साल, हम साथ-साथ
भीगे थे…
मिट्टी आज भी वैसे ही
गंधा रही है,
हवा की मादकता भी/वैसी ही है,
और
कजलाया है अंबर भी आज
उसी शाम की तरह, जब
सावन की तेज बौछारों में
भीगते हुए/तुम्हारी आँखों में
उतर आई थी
सपनों की हरियाली
और
जीवन एक खुशनुमा
फूल-सा लगने लगा था...!
आज/आज भी
सब कुछ
वैसा ही है, मगर तुम
दूर/कहीं दूर
बहुत दूर हो...!
[उमा अर्पिता]
चलते हैं आज की हलचल की ओर इन लिकों के साथ...
अजामील ने संन्यास लियाऔर गंगा के किनारे प्रभु भक्ति में जीने लगा। अब उसके कोई मोहबंधन नहीं बचे थे। शीघ्र ही उसकी मुक्ति का समय आ गया और विष्णुदूत आकर
उसे ले गए और वह मोक्ष को प्राप्त हुआ।
पानी का पेड़
आसमान हो गया
वर्षा में भींगकर
मैं महान हो गया।
अखबार बवाल करता मिला कहीं
कहीं कोताही कानून की
ईमान की दुकान पर
सच रोया ज़ार ज़ार
मोल
जमीर का
नौशेरा के शेर के'रूप में ज्यादा जाने जाते हैंवह भारतीय सेना के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और साहसी सैनिकों में से एक थे, जिन्होंने जम्मू में नौशेरा के समीप
झांगर में मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राण गंवा दिए थे।
क्या आप सबको यह पढ़कर सामान्य सा लग रहा हैया एक प्रतिभा की समाप्ति पर दुख, क्षोभ या क्रोध आ रहा है?
या आपको यह त्याग महान और अनुकरणीय लग रहा है?
क्या वह स्त्री अपने त्याग और तपस्या के आलोक से ही प्रसन्न व सन्तुष्ट होंगी?
यदि हाँ तो उन्होंने लगातार मुझसे अपनी रिसर्च की बातें क्यों कीं?
सही की चाहे गलत की
पार्थ तुमने प्रतिज्ञा की,
अगर निश्चय कर लिया तो, लक्ष्य का एक मार्ग भी चुन ।
है अभी दिन शेष अर्जुन
बंजर रेतीली धरती में , कुछ वृक्ष लगाने का मन है
मानव हूँ,जग संरचना में,कुछ अंशदान कर जाऊँगा !
जब कलम उठाई हाथों में , लोगों ने छींटे , खूब कसे !
स्मरण कबीरा का करके,शीशा दिखला कर जाऊँगा !
कि हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं
बेपनाह करते थे और बेइंतहा करते रहेंगे
सिर्फ इस जन्म में ही नहीं आने वाले
हर जन्म में हम तुमसे ही मिलेंगे
सच्चाई फुटपाथ पर, बैठी लहू-लुहान
झूठ निरंतर बढ़ रहा,निर्भय सीना तान.
उन्नति करते जा रहे,अब झूठे-मक्कार.
होगा जाने किस तरह,सच का बेड़ा पार.
कुलदीप ठाकुरआप से हलचल समापती की अनुमति चाहता है...
धनयवाद